भूमि अधिग्रहण के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आंदोलन स्वरूप लेने लगा है

देश भर में चल रहे भूमि अधिग्रहण के खिलाफ राष्ट्रीय सभा का आयोजन 7-8 फरवरी 2007 को नई दिल्ली के लोधी रोड स्थित 'इण्डियन सोशल इंस्टीटयूट' में किया गया। इस सभा का आयोजन पूर्व वित्त सचिव (भारत सरकार) एस. पी. शुक्ला, सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण और नवधान्य की संस्थापिका डा. वंदना शिवा द्वारा किया गया। सभा का उद्देश्य जमीनी स्तर के आंदोलनों को राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ाना है, जो सेज़ के लिए कब्जाई जा रही जमीनों के अभियान के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। सभा में उपस्थित अनेक नीति निर्माताओं, विशेषज्ञों और लड़ने वालों ने एकसाथ मिलकर जमीन और जमीन संबंधी अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक रणनीति पर विचार किया। इस अवसर पर सेज अधिनियम के सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक-राजनैतिक स्वरूप का विश्लेषण भी किया गया, जिससे यह बात साफ-साफ दिखाई देने लगी कि सेज कुछ नहीं है बल्कि लाखों किसानों से जमीनें छीनकर उन्हें कंगाल बना देने की एक बहुराष्ट्रीय साजिश है।
पहली बार ऐसा हुआ है कि देश के विभिन्न भागों के बहुराष्ट्रीय भूमि अधिग्रहण के खिलाफ लड़ने वाले जनांदोलन अपने संघर्ष को तेज करने के लिए एकजुट हो गए हैं। किसान जागरूक मंच (गुड़गांव-झज्जर), भारत किसान यूनिसन एकता (पंजाब), विदर्भ जनांदोलन (महाराष्ट्र), कर्नाटक राज्य रैयत संघ (कर्नाटक), विस्थापन विरोधी जनमंच (कलिंग नगर,उड़ीसा), राष्ट्रीय युवा संगठन (उडीसा), प. बंगाल खेत मजदूर समिति ( प.बंगाल), नंदीग्राम के किसान आंदोलन और अन्य संगठनों ने राष्ट्रीय सभा में मिलकर संघर्ष के लिए विचार किया। विभिन्न आंदोलनकारियों ने अपने-अपने क्षेत्रों में चल रहे भूमि अधिग्रहण के खिलाफ संघर्षों के बारे में भी बताया। उनके व्याख्यानों में विद्रोह के स्वर स्पष्ट सुनाई दे रहे थे। कर्नाटक राज्य रैयत संघ की ओर से कर्नाटक में हो रहे संघर्ष के बारे में बोलते हुए बासवराजू ने कहा -''सारे गांव को ब्रोंकरों और बिचौलियों का गांव बनाया जा रहा है।''
अनुराधा तलवार जिनको सिंगूर में गिरफ्तार कर लिया गया था। 6 फरवरी को जेल से रिहा होने के बाद सीधे ही प.बंगाल से राष्ट्रीय सभा में पहुंचीं। उन्होंने बताया कि तेभागा आंदोलन में औरतो ने यहां तक कहा है कि ''हम जान दे देगें लेकिन चावल नहीं देंगें'', ''हम जान दे देंगे लेकिन जमीनें नहीं देंगे।''वालमार्ट की सप्लायर 'ट्रिडेंट ग्रुप ऑव इण्डट्रीज' के द्वारा बरनाला में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ संघर्ष कर रहे भारत किसान यूनियन एकता के सुखदेव सिंह ने बताया कि कैसे पुलिस ने गांव में आतंक फैला रखा है और जमीन की रक्षा करते हुए किस तरह तीन किसान भी शहीद हुए हैं। लेकिन किसान अब भी डटे हुए हैं। इस अभियान को उन्होंने ''मातृभूमि रक्षा'' का नाम दिया है। 31 जनवरी को पुलिस के साथ हुई आमने-सामने की भिड़ंत में 70 किसान घायल हो गए थे, इस संघर्ष की अगुवाई पन्द्रह वर्षीया एक लड़की द्वारा की गई थी। 9 फरवरी को बच्चे और औरतें मिलकर एक आंदोलन करेंगें जिसका नारा है ''''बच्चा-बच्चा झोक देंगे, जमीन ते कब्जा रोक देंगे।''
गुड़गांव और झज्जर में रिलायंस के खिलाफ लड़ने वाले 22 गांवों के जागृत किसान मंच की ओर से सद्बीर गुलिया ने बताया कि सेज बनाकर सरकार प्रोपर्टी डीलर बन गई है और जमीनें कब्जाने वाले बहुराष्ट्रीय माफिया राज्य के शासक बन बैठे हैं। उन्होंने आगे यह भी कहा कि किसान अपनी जमीनों के अधिकारों के लिए लड़ रहे है और लड़ते हुए जान भी देनी पडी, तो वे इसके लिए भी तैयार हैं। पूर्व नौ सेना अध्यक्ष एडमिरल रामदास, जो अब महाराष्ट्र के अलीबाग में किसानी करते हैं। वे भी 22 गांवों की समिति के सदस्य हैं और भारत के सेज (सिलेक्टिव एक्सक्लूसिव जमींदार) से अपनी जमीनें बचाने के लिए लड़ रहे हैं। उन्हांने बताया कि ''मैने 45 वर्षों तक देश की रक्षा के लिए काम किया है और अब सरकार हमारी जमीनों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों को दे रही है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा हथियाई जा रही जमीनों की सबसे बड़ी कीमत उड़ीसा के किसानों और आदिवासियों को चुकानी पड़ी है। 2001 में काशीपुर में 3 और 2006 में कलिंगनगर में 13 आदिवासी मारे गए। उड़ीसा के प्रफुल्ल सामंत्र ने बताया कि उडीसा में 45 स्टील प्लांटों के लिए 2,00,000 एकड़ जमीन पर कब्जा किया जा रहा है और यह स्टील भी भारत की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नहीं बनाया जाएगा। इससे तो ऐसा लगता है कि भारत बहुराष्ट्रीय कंपनियों को पर्यावरणीय छूट देकर अपने प्राकृतिक संसाधनों को खत्म कर रहा है।
इस अवसर पर वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने बताया कि ''भारत ने जमींदारी प्रथा खत्म करके भूमि हदबंदी की और भूमि सुधार किए, पर अब वही भारत नए जमींदारों की जमात पैदा कर रहा है। सेज के अंतर्गत अमीर कंपनियों को दावत दी जा रही है। अन्य व्यापारियों पर सीलिंग के आदेश दिए जा रहे हैं। रिलायंस को 60,000 एकड़ जमीन दी गई हैं। मुकेश अंबानी रिलायंस में 50 फीसदी का हिस्सेदार होने के कारण किसानों के 30,000 एकड़ जमीन का मालिक बन बैठा है।
गुड़गांव-झज्जर संघर्ष के महावीर गुलिया ने घोषणा की कि सरकार और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को यह सोचना छोड़ देना चाहिए कि वे किसानों को थोड़े से पैसे का लालच देकर जमींन से उनके रिश्ते को तोड़ देंगे। भूमि सुधारों संबंधी मुद््दों के विशेषज्ञ और पूर्व 'रूरल डेवलपमेन्ट सेक्रेटरी' के. बी. सक्सेना ने बताया कि मजदूर, शिल्पकार आदि को किसानों में गिना हीं नहीं जाता और जो 40 फीसदी लोग गिने जाते है उनमें भी केवल 14 फीसदी को ही पुर्नस्थापित किया गया है। पहले से ही देश में करोड़ो लोगों को उजाड़ा जा चुका है, इसके बाद 10 करोड़ किसानों को और जमीन से उजाड़ दिया जाएगा तो स्थिति और भी भयावह हो जाएगी, जिससे ऐसा सामाजिक, सांस्कृतिक और राजन्तिक विनाश पैदा होगा जो भारतीय इतिहास में कभी नहीं हुआ। सरकार कई तर्कों का सहारा लेकर इस विस्थापन को उचित साबित कह रही है जैसे इसके लिए पश्चिमी समाजों के ऐतिहासिक विकास का उदाहरण देकर कहा जा रहा है कि भारत में बहुत ज्यादा किसान हो गए हैं। डा. वंदना शिवा और डा. उत्सा पटनायक ने बताया कि जब इंग्लैण्ड में किसानों को उजाडा गया था तो उन्होंने अमरीका में रेड इण्डियनों की, आस्ट्रेलिया में अबोरिजन और अफ्रीका में देसी समुदायों की जमीनों पर उपनिवेश बना लिए थे। अगर भारत के खेतों पर भी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने उपनिवेश बना लिए तो भारत के उजड़े किसान कहां जाएगे? जनांदोलनों ने सेज के खिलाफ एक साथ लड़ने का संकल्प किया। पूर्व प्रधानमंत्री वी. पी. सिंह, आगरा के सांसद राजबब्बर और जनमोर्चा के अध्यक्ष ने भी भूमि अधिग्रहण के खिलाफ किसानों के आंदोलन का साथ देने की घोषणा की। महाराष्ट्र के भूमंडलीकरण विरोधी आंदोलन के प्रमुख एन. डी. पाटिल भी इस सेमिनार में शामिल हुए और कहा कि सेज अधिनियम को खत्म किया जाना चाहिए। भारत जनांदोलन के नेता व पूर्व कमिश्नर बी डी शर्मा भी भूमि अधिग्रहण के खिलाफ लड़ रहे हैं, उन्होंने भी सभा को संबोधित किया और कहा कि यह लडाई जमीन और प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा करने वाली कंपनियों और जनता के बीच है जो अपनी जमीन, पानी और जीविका की रक्षा के लिए संघर्ष कर रही है। नवधान्य ने किसानों की भू सम्प्रभुता की रक्षा के लिए एक चार्टर और 'कंपनियों का जमीनों पर कब्जा' नामक रिपोर्ट भी सभा में प्रस्तुत की। आंदोलनों ने भारत में सेज के खिलाफ विरोध को राष्ट्रीयव्यापी करने का संकल्प किया।

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