हरित क्रांति से कैंसरग्रस्त हुए पंजाबी पुत्तर
भटिंडा का भूजल नाईट्रेट से प्रभावित
भटिंडा सहित पंजाब के कई जिलों के पानी में नाईट्रेट का जहर
पंजाब के तीनों जिलों के विभिन्न गांवों से पानी के नमूनों की जांच के आधार पर ग्रीन पीस द्वारा तैयार रिपोर्ट के मुताबिक यह बात भी सामने आई कि इन जिलों में धरती के पानी में नाईट्रेट की खतरनाक मात्रा किसी कुदरती प्रकोप से नहीं बढ़ी है, बल्कि इसके लिए धरती-पुत्र (किसान) सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। जिन्होंने अपनी जमीनों में फसल की पैदावार बढ़ाने के लालच में रासायनिक खादों का अंधाधुंध इस्तेमाल किया। नतीजतन नाईट्रेट ने मिट्टी को अपना निशाना बनाने के साथ धरती के पानी को भी अपनी चपेट में
भटिंडा के पानी पर कुछ कहानियां
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भारत में “हरित क्रान्ति” की शुरुआत से अर्थात 1960 से ही कृषि उत्पादन हेतु बड़ी मात्रा में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग प्रारम्भ किया गया। खेती का यह मॉडल तथा विभिन्न केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा रासायनिक उर्वरकों तथा इसकी फ़ैक्ट्रियों को दी जाने वाली सब्सिडी की वजह से देश के अधिकतर भागों में कृषि कार्य हेतु रसायनों का भारी मात्रा में उपयोग हुआ। उर्वरकों के इस अंधाधुंध उपयोग की वजह से जहाँ एक तरफ़ पर्यावरण को काफ़ी नुकसान पहुँचा, वहीं दूसरी तरफ़ प्राकृतिक संसाधनों, जल और मिट्टी के साथ-साथ यह खतरा अब मानव जीवन पर भी मंडराने लगा है। “ग्रीनपीस” की भारतीय शाखा ने नाईट्
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द संडे पोस्ट