न्यायिक जवाबदेही कहां? न्यायाधीश वाई. के. सब्बरवाल और दिल्ली में सीलिंग

न्यायिक जवाबदेही लंबे समय से समाज के हर जनमानस को सवाल उठाने पर मजबूर कर रही है। इसी मसले को लेकर प्रेस क्लब ऑव इंडिया में प्रेस कांफ्रेंस आयोजित की गई। 'कैम्पेन फार ज्यूडिशियल एकाउंटेबिलिटी एंड रिफार्म' के बैनर तले आयोजित इस कांफ्रेंस में पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण, भास्कर राव और अन्य बुध्दिजीवियों ने भारतीय न्यायिक व्यवस्था में होते दुराचार के गंभीर मुद्दे उठाए।
प्रशांत भूषण ने बताया कि 16 फरवरी 2006 को भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश वाई. के. सब्बरवाल ने दिल्ली के रिहायशी इलाकों में व्यवसायिक गतिविधियों में इस्तेमाल की जा रही संपत्तियों की सीलिंग के आदेश जारी किए थे। न्यायालय ने ये आदेश दिल्ली मास्टर प्लान-2001 के तहत विधि का शासन लागू करने के लिए जारी किए थे। सीलिंग से जनता को राहत देने के लिए कुछ समय बाद सरकार ने एक नया मास्टर प्लान-2021 लागू किया, जिसमें संपत्ति के व्यवसायिक इस्तेमाल जारी रखने की अनुमति दी गई थी। बावजूद इसके न्यायालय ने सीलिंग के अपने कठोर आदेश जारी रखे।
उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद शॉपिंग मॉल और कमर्शियल कॉम्प्लेक्सों में दुकानों और दफ्तरों के दाम रातोंरात आसमान छूने लगे। अब सवाल यह उठता है कि क्या सीलिंग मॉल और कमर्शियल कॉम्प्लेक्स डेवलपर्स को मुनाफा पहुंचाने के लिए की गई थी। सच तो यह है कि ये आदेश जस्टिस सब्बरवाल ने अपने दोनों बेटों चेतन और नितिन के मुनाफे के लिए जारी किए थे, जो उस समय तक एक्सपोर्ट और एम्पोर्ट का छोटा बिजनेस करते थे। बाद में उन्हाेंने बीपीटीपी ग्रुप कमर्शियल कॉम्प्लेक्स डेवलपर काबुल चावला और पुरुषोत्तम बाघेरिया के साथ साझीदारी कर ली थी। 2004 तक उनके पास मात्र तीन कंपनियां थी- पवन इम्पेक्स, साब्स एक्सपोर्ट और सग एक्सपोर्ट, जिनका रजिस्टर्ड ऑफिस सब्बरवाल का अपना घर 3/81 पंजाबी बाग था। इसे जनवरी 2004 में 6 मोतीलाल नेहरू मार्ग पर स्थानांतरित कर दिया गया और 7 मई 2004 को जस्टिस सब्बरवाल ने सीलिंग के आदेश जारी किए। उसका खुद का घर तो बच गया और सीलिंग के आदेश के बाद तो मॉल्स और कमर्शियल कॉम्प्लेक्स के बिजनेस में उसके बेटों की चांदी हो गई। 22 अगस्त 2006 को पवन इम्पेक्स को यूनियन बैंक ऑफ इंडिया कनॉट प्लेस ने 28 करोड़ रुपए का लोन मंजूर किया, जिसमें सिक्योरिटी के तौर पर नोएडा के सेक्टर-125 में प्लॉट संख्या ए-3, 4 और 5 में स्थित प्लांट, मशीनरी और अन्य संपत्ति रखी गई, जबकि वहां असलियत में प्लांट के बजाय पांच लाख स्क्वायर फिट का एक बड़ा आईटी पार्क बनाया जा रहा है। तीनों प्लॉट (12 हजार वर्ग मीटर प्रति प्लॉट) पवन इम्पेक्स को उत्तर प्रदेश की मुलायम/अमरसिंह सरकार ने 29 दिसंबर 2004 को मात्र 3700 रुपए वर्गमीटर की दर पर आवंटित किए थे। 10 नवम्बर 2006 को 12 हजार वर्ग मीटर का ही एक अन्य प्लॉट (12ए सेक्टर-68) मात्र चार हजार रुपए वर्ग मीटर की दर से, 800 वर्ग मीटर के तीन प्लॉट (सी-103, 104, 105 सेक्टर-63) में 2100 रुपए प्रति वर्ग गज की दर से आवंटित किए थे। और ऊपर से इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा सीबीआई जांच के लिए दिए गए निर्देशों पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीपी सिंह ने रोक लगा दी। मजेदार बात तो यह है कि अमरसिंह की पोल खोलने वाले टेप पर भी जस्टिस सब्बरवाल ने ही रोक लगाई। इस तरह मात्र दो साल में ही जस्टिस सब्बरवाल के बेटे कमर्शियल कॉम्प्लेक्स के बिजनेस में करोड़ों में खेलने लगे और यह सब उस दौरान हुआ जब जस्टिस सब्बरवाल मुख्य न्यायाधीश थे और सीलिंग आदेश जारी कर रहे थे।
पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण ने कहा कि सब्बरवाल और उनके बेटों का व्यवहार न्यायिक मर्यादाओं को भंग करता है। सीलिंग पर दिए गए उनके आदेश प्राकृतिक न्याय के सिध्दांत के खिलाफ है, क्योंकि इनके अनुसार कोई भी जज ऐसा मुकदमा नहीं सुन सकता, जिसमें उसके निजी स्वार्थ टकराते हों। सीलिंग के आदेश से संबंधी यह मामला भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के अंतर्गत अपराध की श्रेणी में आता है।
सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज के निदेशक भास्कर राव, पूर्व कानून मंत्री श्री शांति भूषण और अन्य बुध्दिजीवियों ने इस मामले की पूर्णतया तहकीकात करने की मांग की है। 'कैम्पेन फार ज्यूडिशियल एकाउंटेबिलिटी एंड रिफार्म' ने समाज के प्रत्येक वर्ग से इसके खिलाफ संघर्ष का आह्वान किया है ताकि संसद और सरकार पर एक उचित संवैधानिक संशोधन बिल के लिए दबाव बनाया जा सके।

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