न्यायपालिका में सुधारों के लिए हुआ जनसंगठनों का जमावड़ा

देश की आधी आबादी अभी भी न्यायपालिका के दरवाजे तक पहुंच नहीं पाती
-जस्टिस पी वी सांवत

नई दिल्ली, 10 मार्च (पीएनएन), परिवर्तन, सूचना अधिकारों का राष्ट्रीय अभियान, लोक राज संगठन, अभ्युदय, आशा आश्रम, मीडिया अध्ययन केन्द्र, लोकायन, झुग्गी बस्ती संघर्ष मोर्चा इन्दौर, दिल्ली फोरम, जागोरी, जनहित मंच मुम्बई, पीयूसीएल, जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, न्यायिक सुधार-जवाबदेही अभियान सहित दर्जनों संगठनों के सैकडों प्रतिनिधियों ने दिल्ली में न्यायपालिका में सुधारों के लिए 'जन पंचायत' की। जन पंचायत में न्यायपालिका को जबावदेह बनाने के लिए चिंतन किया गया। जनपंचायत में कहा गया कि न्यायालय द्वारा फैसलों में वर्शों का समय लगता है और अगर किसी मुकदमे का समय से निर्णय हो भी जाता है तो वह भी ज्यादातर विकृतिपूर्ण ही होता है। वास्तव में पूरी न्यायिक प्रक्रिया ही जबरदस्त भ्रश्टाचार की शिकार हो गयी है। न्यायपालिका में जवाबदेही के लिए कोई तंत्र न होने की वजह से, इसका भ्रष्टाचार दिखाई नहीं देता। तथाकथित महाभियोग की व्यवस्था के अतिरिक्त भ्रष्ट न्यायाधीषों को अनुषासित करने का अन्य कोई साधन नहीं है। यहां तक कि खुले रूप से रिष्वत लेने वाले किसी न्यायाधीश के खिलाफ एफआईआर तक दर्ज कराने के लिए मुख्य न्यायाधीश की स्वीकृति लेना आवष्यक बना दिया गया है, जो कभी मिलती ही नहीं है। हद तो यह हो गयी है कि न्यायपालिका ने अपनी जवाबदेही से बचाव अपने ही द्वारा बनाए निर्णयों से कर रखा है, इसलिए जनपंचायत ने एक सुर में कहा कि न्यायिक-सुधार आज के समय की मांग है। जनपंचायत को न्यायधीश पीबी सांवत, एडमीरल के तेहलियानी, लेखिका अरुंधति राय, पूर्व कानूनमंत्री शान्ति भूषण आदि ने संबोधित किया। कार्यक्रम का संचालन अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने किया।
न्यायाधीश पी वी सांवत ने जनपंचायत में बोलते हुए कहा कि न्यायपालिका में सुधार केवल वकालत के लोगों का काम नहीं है, जनता को भी पहल करनी होगी। देश की आधी आबादी न्यायलय से कोसों दूर है। 70 फीसदी आबादी को तो यह भी पता नहीं है कि न्याय उसका हक है। न्यायधीषों के चयन की प्रक्रिया में सुधार की ओर संकेत करते हुए उन्होंने एक स्वतंत्र चुनाव समिति बनाए जाने पर जोर दिया।
पूर्व कानूनमंत्री शान्ति भूषण ने अपने व्याख्यान में कहा कि न्यायपलिका में सुधार के लिए देश की जनता को आगे आना होगा। 57 साल पहले देश ने साम्राज्यवादी षासन से मुक्त होकर प्रजातंत्र का रास्ता चुना था। अब लोगों की जिम्मेदारी है कि लोग सभी व्यवस्थाओं की समीक्षा करें। न्यायपालिका की समीक्षा जनता कड़े रूप से करे। आज बहुत सारे ऐसे न्यायधीश हैं, जिन्हें नहीं होना चाहिए। निहायत जरूरी हो गया है कि न्यायाधीश प्रतिवर्श अपनी संपत्ति की घोशणा करें। साथ ही न्यायधीषों के भ्रश्टाचार पर नियंत्रण के लिए जनता, संसद, विपक्श और न्यायपालिका को मिलाकर आयोग बनाया जाना चाहिए, न कि केवल न्यायधीशों का।
प्रख्यात लेखिका अरुंधति राय ने कि न्यायपालिका सबसे ज्यादा शक्तिशाली तंत्र बनती जा रही है, यहां तक कि हमारे जीवन पर भी हावी होती जा रही है। न्यायपालिका की जवाबदेही मात्र अमीरों के प्रति ही रह गयी है। विवेक, दृश्टि का अभाव न्यायपालिका के फैसलों में आम बात हो गयी है। असल में तो न्यायपालिका को आम आदमी के चौकीदार की तरह काम करना चाहिए।
इस अवसर पर अध्यक्षता व्याख्यान में एडमिरल तेहलियानी ने चुटकी ली कि पुलिस के बाद न्यायपालिका ही दूसरा सबसे भ्रष्टतंत्र है। 'जनपंचायत' में जुटे संगठनों ने देश भर में न्यायपालिका में सुधारों के लिए देश व्यापी अभियान चलाने का संकल्प जाहिर किया।

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