नंदीग्राम का सबक - शिराज केसर

पश्चिमी बंगाल के मुख्यमंत्री बुध्ददेव भट्टाचार्य की वजह से आज पूर्वी मेदिनीपुर की नंदीग्राम तहसील किसी परिचय का मोहताज नहीं रह गयी है। बुध्ददेव के तेज रफ्तार की औद्योगीकरण की आंधी में नंदीग्राम भी एक पड़ाव है। नंदीग्राम का सेज इंडोनेशिया की कंपनी 'सलेम ग्रुप' द्वारा बनाया जाना है। नंदीग्राम में बनने वाला सेज 'केमिकल सेज' है। इसके लिए नंदीग्राम और आसपास के गावों की कुल 14,200 एकड़ जमीन ली जानी है। यह जमीन सलेम ग्रुप को दी जानी है। माकपा सरकार और पुलिस ने सिंगूर में दमन के बदौलत जमीन हथियाने में सफल रहने के बाद कुछ समय पहले ही नंदीग्राम में भी वही रास्ता अपनाने का मन बना लिया था। नंदीग्राम के धिनौने नरसंहार के बहाने ही देश को यह जानने का मौका मिला है कि पश्चिमी बंगाल में लोकतंत्र के नाम पर माकपा की पार्टी-तानाशाही चलती है। पश्चिमी बंगाल के माकपा मुख्यमंत्री बुध्ददेव भट्टाचार्य का कहना है कि नंदीग्राम में कानून की स्थिति सुधारने तथा गांव वालों से बातचीत के लिए पुलिस को भेजा गया था। फिर पुलिस के साथ-साथ माकपा कैडर (पुलिस के ड्रेस में) क्यों भेजा गया? क्या कानून की रखवाली का काम माकपा कैडर से ही करवाते हैं मुख्यमंत्री बुध्ददेव भट्टाचार्य? कैडर की गांव वालों ने पहचान बताई कि कैडर होता तो है पुलिस ड्रेस में, पर उसके हथियार पुलिस के हथियार से अलग तथा जूतों के बजाय चप्पल होती है।
गांधी के बाद कांग्रेस कीे वैचारिक विपन्न्ता ने हिन्दुस्तानी चिंतन की धारा को ही रोक दिया। साम्यवादी बुध्दिजीवियों ने कांग्रेस को वैचारिक रूप से कब्जे में ले लिया और हिन्दुस्तान की शाश्वत चिंतन परपंरा को कुंद कर दिया। अब तक लगातार इनने 'सर्वहारा तानाशाही' का समर्थन किया है। नंदीग्राम के नरसंहार पर शायद ही किसी साम्यवादी को आश्चर्य हुआ होगा। लोकतंत्र को पूंजीवाद का मुखौटा कहने वाले साम्यवादियों को शायद ही कभी लोकतंत्र में विश्वास रहा हो। लोकतंत्र के बजाए साम्यवाद के एजेंडे पर काम रहे लोगों का हाल वही है, जैसे कुछ लोग हिन्दु राष्ट्र के लिए काम कर रहे हैं।
वैसे यह साम्यवाद का पुराना झगड़ा रहा है कि जमीन और उद्योग में प्राथमिक क्या होना चाहिए? यह सवाल ही रूस और चीन के बीच मतभेद का कारण भी रहा है। रूस ने जब उद्योगों के माध्यम से विकास का रास्ता पकड़ा तब चीन ने खेती के विकास से आगे बढ़ने की कोशिश की, जो काफी हद तक सफल भी रहा। रूस की गलतफहमी इतिहास बन चुकी है, जबकि चीन आगे बढ़ रहा है। भारत में यही झगड़ा भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी में विभाजन का कारण बना। भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी) माकपा का जन्म खेती से विकास के रास्ता मानने वालों ने किया। पर माकपा अपने ही मान्यताओं से आज अलग खड़ी है।
माकपा ने अपनी मान्यताओं की बलि जाने कब की दे दी है। साथ ही 'पार्टी तानाशाही' की स्थापना भी वह काफी समय से कर चुकी थी, पर बुध्दिजीवियों के लिए वह दानापानी उपलब्ध कराती रही थी, इसीलिए उनको देर से शायद अब दिखना शुरू हुआ है, सुमित सरकार हों अन्य कोई भी। चीन में लोकतंत्र की मांग करने वाले 10,000 से ज्यादा नौजवानों की हत्या करने वालों को प्रशंसित निगाह से देखने वालों को शायद ही उस समय शर्म आई हो या अब आएगी।
हां ज्यादा से ज्यादा साम्यवादी बुध्दिजीवियों को यह लग रहा होगा कि आखिर छिपी खबरें देश के सामने क्यों आ रही हैं? हालांकि कुछ साम्यवादी बुध्दिजीवियों ने इस्तीफा दिए हैं। पर ये बातें हमारे उस चिंता का समाधान नहीं हैं कि जिनको लोकतंत्र में विश्वास नहीं है; आखिर उनके साथ देश का क्या बर्ताव होना चाहिए।
चलिए अब नंदीग्राम का हाल जानते हैं। मुख्यमंत्री बुध्ददेव भट्टाचार्य कहते हैं कि वहां कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ गयी थी। कानून का राज स्थापित करने के लिए पुलिस को भेजा गया था। लोगों के हिंसक प्रतिरोध की स्थिति में पुलिस को गोली चलानी पड़ी। पर क्या यह सोचने का सवाल नहीं है कि दो दशक से भी ज्यादा समय से राज कर रही माकपा ने लोगों को आज तक सिखाया क्या है; तोड़फोड़, हिंसा और असहिष्णुता। पार्टी लाइन से कोई असहमत है तो, उसको मारपीट कर समझाना माकपा का पुनीत काम रहा है। क्या नंदीग्राम में हिंसक आन्दोलन शुरू से ही रहा? नहीं! तो फिर क्या कारण है कि आज पूरा नंदीग्राम हिंसक हो चुका है? बुध्ददेव को याद होगा कि नंदीग्राम का आन्दोलन शुरू से ही हिंसक नहीं रहा है। पर माकपा कैडर के बार-बार हमले की वजह से लोगों ने आत्मरक्षा में हथियार उठाए हैं। पुलिस और कैडर का यह चौथा हमला है। 14 मार्च के नरसंहार के पहले भी माकपा कैडर 10 से ज्यादा लोगों की जान ले चुका है। पुलिस के लिए तो लोगों ने जनता र्कफ्यू लगा रखा है, पुलिस को तो लोग अपने इलाके में घुसने नहीं देते। माकपा का कैडर ही हथियारबध्द होकर छापामार तरीके से हमला करता रहा है।
नंदीग्राम के लोगों के नारों की गूंज आज देश में 'अंतरधारा' बनकर घूम रही है। 'जान देगें: जमीन नहीं देंगे।' क्या यह नारा माकपा ने नहीं सुना। जहां तहां लोगों ने इस नारे में परिवर्तन भी कर लिया है, 'जमीन नहीं देंगे: जान नहीं देंगे, जरूरत पड़ी तो जान ले लेंगे।' क्या बुध्ददेव जी आपने कभी सोचा है कि जिस विकास को लाने के लिए आप लोगों की जान ले रहे हैं, लोग ही नहीं रहेंगे जो विकास किसका करेंगे। शायद आपको यह भी नहीं मालूम कि नंदीग्राम में केवल तृणमूल ही नहीं लड़ रही है, गांधी को मानने वाले और नक्सली दोनों साथ-साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ रहे हैं। जो लोग क्रान्ति के हिंसक रास्ते में विश्वास करते हैं उनसे शायद आपका माकपा कैडर तो निपट ले, पर आत्मोत्सर्ग, प्रायश्चित, अहिंसा और प्रेम से हक की लड़ाई लड़ने वालों से आप कैसे निपटेंगे?नंदीग्राम का सबक बहुत साफ है कि देश को किसी भी तरह की तानाशाही नहीं चाहिए, चाहे वह पूंजीवाद की हो या साम्यवाद की।

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