पॉस्को नहीं हक चाहिए -सिराज केसर

सरकारों का बहुररष्ट्रीय कंपनियों के आगे झुकने का इससे गंदा उदाहरण कम ही मिलेगा। उड़ीसा सरकार ने जगतसिंहपुर जिले में 'उत्कल दिवस' (उड़ीसा के निर्माण दिवस) 1 अप्रैल को पॉस्को निर्माण दिवस के रूप में मनाने का कार्यक्रम तय किया था। 'उत्कल दिवस' को इस तरह का रूप देना लोगों को नागवार गुजरा। पॉस्को के खिलाफ आन्दोलन कर रहे लोगों ने साफ शब्दों में चेताया कि सत्तारूढ़ सरकार का यह प्रयास बिल्कुल गलत है, क्योंकि इससे मातृभूमि के जन्मदिवस की पवित्रता भंग होती है और आन्दोलनकारी इसे किसी कीमत पर सम्भव नहीं होने देगें। पॉस्को विरोधी ताकतों ने 'उत्कल दिवस' 1 अप्रैल को एकजुट होने और पॉस्को भगाने का संयुक्त संकल्प का कार्यक्रम 'बिकल्प समाबेस' के रूप में आयोजित किया।
उड़ीसा के जगतसिंहपुर जिले के ढिनकिया, गड़कुजंगा और नवगांव गांवों के लोगों के साथ 'बिकल्प समाबेस' के लिए राज्य के अलग- अलग हिस्सों से हजारों लोग बालितुथा में इकट्ठा हुए, जहां प्रशासन ने कई हफ्तों से धारा 144 लगा रखी थी। प्रशासन ने राज्य सरकार को साफ तौर पर यह संकेत दे दिया था कि ज्यादातर स्थानीय लोग अभी भी पॉस्को परियोजना का विरोध कर रहे हैं। 'बिकल्प समाबेस' कार्यक्रम में भाग लेने वालों को जगह-जगह रोका गया। लौह अयस्क प्रभावित झरसुगुड़ा क्षेत्र से आने वाले लगभग 300 लोगों को रोक दिया गया था, इनमें ज्यादातर लोग किसान थे। बावजूद प्रशासन की रोकथाम के सुकिंडा, बेरहामपुर, कालाहांड़ी, झारखंड और अन्य स्थानों से हजारों लोग वहां पहुंचे और पुलिस के सभी बैरिकेड को तोड़ दिया। उन्होंने बालितुथा तक एक बड़ी रैली निकाली और ढिनकिया, गड़कुजंगा और नवगांव के लोगों से जा मिले, जो पिछले दो साल से 'पॉस्को प्रतिरोध संग्राम समिति' के झंडे तले पॉस्को के लिए प्रस्तावित परियोजना का विरोध कर रहे हैं। पॉस्को परियोजना से प्रभावित गांवों को प्रशासन ने पिछले दो वर्ष से अघोषित कारागर जैसा बना रखा है। उन गांवों के चारों तरफ जगह-जगह पर पुलिस की चौकियां और आने-जाने के रास्तों पर बैरिकेड लगे हुए हैं। पॉस्को परियोजना से प्रभावित गांवों को अलग-थलग करके उनकी जमीन पॉस्को को दिलवाने के लिए प्रशासन ऐसा कर रहा है।
पॉस्को विरोधी ताकतों की रैली ने पुलिस द्वारा लगाए गए बांस के बैरिकेड को हर जगह हटा दिया और प्रशासन को 'उत्कल दिवस' को पॉस्को निर्माण दिवस के रूप में मनाने के कार्यक्रम को खत्म करने पर मजबूर कर दिया तब पुलिस ने अपनी मशीनगनों से पॉस्को विरोधी रैली के पांच हजार से भी ज्यादा लोगों को डराने की कोशिश की। लेकिन इससे लोग और गुस्से में आ गए और रैली में आई महिलाओं ने पुलिस को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया और 'बिकल्प समाबेस' के लिए रास्ता बनाया। उस समय ऐसा लगा कि जैसे यहां भी एक बार फिर से कलिंगनगर जैसी विनाश लीला होगी, लेकिन प्रशासन ने समझदारी दिखाई और पुलिस पीछे हट गई।
समाबेस में कई संगठनों के लोग और बहुत से कार्यकर्ता सम्मिलित हुए और अपने भाषणों में गांव वालों की प्रशंसा की जो कई महीनों से राज्य और पॉस्को के माफिया के दबाव का सामना कर रहे थे। समाबेस को संबोधित करते हुए पॉस्को प्रतिरोध संग्राम समिति के अभय साहू ने यह भी घोषणा की कि धारा 144 की अवज्ञा और 'बिकल्प समाबेस' की सफलता इस बात की ओर स्पष्ट संकेत करते हैं कि पॉस्को वहां नहीं बन पाएगा। उन्होंने सरकार को स्पष्ट चेतावनी देते हुए कहा कि अगर सरकार पॉस्को परियोजना को जारी रखती है तो इससे भी बड़ा विरोध होगा।
झारखंड और दूसरे राज्यों से आए लोगों ने भी वादा किया कि पूरा देश इरसमा ब्लॉक के उन लोगों के साथ है, जो पॉस्को का विरोध कर रहे हैं। कोरिया के मानवाधिकार आयोग और कोरियाई स्टील श्रमिक संघ भी अपने पत्रों के जरिये लगातार इस विरोध का साथ दे रहे है। उन्होंने अपने पत्रों में न केवल राज्य के दमन की निंदा की बल्कि उन सब कामों का भी खुलासा किया है, जिसमें पॉस्को ने ताकत और रिश्वत के बल पर कोरिया में भी ठीक ऐसे ही काम किए, जैसे भारत में चल रहे हैं।
'बिकल्प समाबेस' को कवर करने के लिए अलग-अलग प्रेस के लोग भी शामिल थे, यहां तक कि कुछ विदेशी पत्रकार भी शामिल थे। पर पत्रकारों का झुकाव पॉस्को के पक्ष में ही रहा। उड़ीसा के एक मुख्य समाचार पत्र ने इस बात की झूठी सूचना छापी कि महिला माओवादियों का एक दल रात में गांव में घुसा, जबकि दूसरी ओर टाइम्स ऑफ इंडिया जैसे बड़े अखबारों ने इस 'बिकल्प समाबेस' को अप्रैल फूल जैसी कारस्तानी बताया और उड़ीसा निर्माण दिवस पर एक विदेशी कंपनी के मुनाफे के लिए किए जा रहे राज्य के आंतक को सही करार दे दिया। गौरतलब है कि पॉस्को द्वारा सभी बड़े प्रकाशन समूहों के पत्रकारों को विदेशी टूर पर ले जाया गया था, इसलिए इस तरह की एकतरफा रिपोर्टिंग होना जाहिर सी बात है।
लगता है नंदीग्राम और सिंगूर में हुए घटनाक्रमों से देश की तथाकथित लोकतान्त्रिक सरकारों ने कुछ सीखा नहीं है। पॉस्को जैसी परियोजनाओं का लगातार विरोध हो रहा है; वहीं केंद्र तथा राज्य सरकारें, डब्लूटीओ के दबाव में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लिए रास्ते और आसान कर रही हैं। उड़ीसा सरकार तथा पॉस्को के बीच जिस सहमति पत्र पर हस्ताक्षर हुए हैं, उसके अनुसार दक्षिण कोरियाई स्टील कम्पनीे 51 हजार करोड़ रुपए के निवेश करने जा रही है। उड़ीसा सरकार किसी भी कीमत पर इस सौदे को हाथ से नहीं जाने देना चाहती है। उड़ीसा में जिस एमओयू पर नवीन पटनायक सरकार द्वारा 22 जून 2005 को हस्ताक्षर किया गया वह एक स्टील संयंत्र और एक बन्दरगाह के लिए था। प्रस्तावित संयंत्र जगतसिंहपुर में और कच्चे लोहे की खदानें क्ेयोंझर में होंगी। इसके अतिरिक्त बन्दरगाह जटाधारी में विकसित किया जाएगा। इस समझौते में ऐसी अनेक बातें शामिल हैं जिनका सीधा असर देश की सम्प्रभुता और सुरक्षा पर पड़ता है। लेकिन विरोध की मुख्य वजह भूमि ही है। पॉस्को को अपनी परियोजना के लिए 8000 एकड़ जमीन चाहिए। परन्तु साथ ही इससे अप्रत्यक्ष रूप से 20,000 एकड़ उपजाउ जमीन, जो खनिज अयस्कों की खुर्दाई तथा कम्पनी से निकलने वाले अपशिष्ट और मशीनी गतिविधियों की वजह से प्रभावित होगी। राज्य सरकार ने पहले ही कम्पनी को 25,000 रूपये प्रति एकड़ के हिसाब से 1135 एकड़ जमीन देने का वादा किया है। इस तरह सरकार आदिवासियों की बहुमूल्य जमीन कौड़ियों के दाम पॉस्को को दे रही है। सदियों से जिस जमीन पर आदिवासी रहते आए हैं। उसे वे इतनी आसानी से सरकार को दे देंगे, इसकी संभावना कम ही लगती है। पर सरकार के अड़ियल रुख की वजह से उड़ीसा में एक और बड़ा नंदीग्राम बनने वाला है। इस संयंत्र के लगने से जिले की तीन पंचायतों नवगांव, ढिनकिया, गडकुजंगा और इरसमां ब्लाक के 30,000 लोग विस्थापित होंगे और लगभग एक लाख लोग देर-सबेर विस्थापन का दंश झेलने को मजबूर होंगे।
पॉस्को तथा उड़ीसा सरकार की मिलीभगत से हो रहे इस कुकृत्य का वहाँ के आदिवासियो,ं किसानों तथा मछुआरों द्वारा जबरदस्त विरोध किया जा रहा है। युवा भारत, भारत जन आंदोलन, नवनिर्माण समिति-इरासमा, भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी सहित अनेक संगठनो के विरोध में शामिल हो जाने से 'पॉस्को भगाओ' आंदोलन में तेजी आ गई है। (पीएनएन)

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