विकल्प है - माइकल ऐल्बर्ट

पूंजीवाद में मालिक लोग जनसंख्या के लगभग पाँचवें हिस्से, जिनके पास निर्णय ले सकने के अधिकार वाला काम है, से मिल कर यह तय करते हैं कि किस चीज़ का उत्पादन किया जाए, किन माध्यमों से किया जाए, और उसका किस तरह से वितरण किया जाए। जनसंख्या का लगभग चार बटा पाँच हिस्सा मुख्यतः रटी रटाई मेहनत वाला काम करता है, उसकी आय कम होती है, आदेशों का पालन करता है, बोरियत झेलता है, और यह सब कुछ ऊपर से थोपा हुआ होता है। जॉन लेनन के शब्दों में कहें तो "पैदा होते ही तुम्हें छोटा महसूस कराया जाता है, सारा समय देने के बजाय कुछ समय न देकर। "

पूंजीवाद भाईचारे को खत्म कर देता है, विविधता को एकसार कर देता है, बराबरी को मिटा देता है, और सख़्त पदानुक्रम थोप देता है। ताकत और अवसर इस में ऊपर की तरफ केन्द्रित होते हैं। जबकि पीड़ा तथा प्रतिबंध का भार नीचे ही अधिक होता है। यहाँ तक कहा जा सकता है कि पूंजीवाद कामगारों पर जिस स्तर का अनुशासन थोपता है उतना तो किसी तानाशाह ने भी राजनीतिक तौर पर लागू करने का नहीं सोचा होगा। किसने सुना होगा कि नागरिकों को बाथरूम जाने के लिए अनुमति लेनी पड़े, जो कि कई निगमों, बड़ी कंपनियों में आम बात है। .....

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