जनता को ताकत दो, पुलिस को नहीं - कॉलिन गोन्साल्विस

(साम्प्रदायिक हिंसा (रोकथाम, नियंत्रण और पीड़ित पुनर्वास) विधेयक, 2005 पर टिप्पणी में कॉलिन गोन्साल्विस ने राय दी है कि इस कानून ने पीड़ितों के हितों का अवमूल्यन किया है। उदाहरण के तौर पर यौन हिंसा की स्थिति में यह कानून इस बात को स्वीकार नहीं करता कि दंगों में महिलाओं पर की गई ज्यादतियां सामान्य स्थिति में किए गए अपराध से मूल रूप से अलग हैं)

यूपीए सरकार ने एक बार फिर कानून बनाने में अपनी लापरवाही दर्शायी है। आश्चर्य की बात है कि साम्प्रदायिक हिंसा विधेयक दुरुस्त नहीं है और इसे सिविल सोसायटी ग्रुपों द्वारा विभिन्न एनजीओ के साथ लगातार परामर्श के बाद प्रस्तावित किए गए विधेयकों के दो मसौदों की अनदेखी करते हुए तैयार किया गया है। इस विधेयक में साम्प्रदायिक अपराध की स्थिति में कार्रवाई शुरू करने और मुकदमों पर नियंत्रण के लिए समाज को शक्तिशाली बनाने की बजाए पुलिस की शक्तियां बढ़ाने पर ध्यान केन्द्रित किया गया है। यह मानते हुए कि कई मामलों में सरकार प्रमुख रूप से गलती के लिए जिम्मेदार होती है। .............पूरा पढ़ें

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