(जैसे-जैसे बड़ी कम्पनियाँ और अमीरजादे अपनी दौलत आफशोर बैंकों के कर स्वर्गों (टैक्स हैवन्स) में जमा कर रहे हैं वैसे-वैसे दुनिया भर के देशों को भारी राजस्व की हानि उठानी पड़ रही है। 500 अरब डॉलर की हानि प्रतिवर्ष होने का अनुमान है। यह राशि संयुक्त राष्ट्र के मिलेनियम डेवलेपमेंट लक्ष्यों को हासिल करने के लिये जरूरी धनराशि से भी ज्यादा है। दुनिया भर के नागरिक संगठन इस आफशोर वित्ताीय तन्त्र को चुनाती दे रहे हैं। इस वित्ताीय तन्त्र पर एक छोटा सा खोजपरक लेख ओटावा (कनाडा) स्थित इण्टरनेशनल सोशल जस्टिस आर्गेनाइजेशन से जुड़े शोधकर्ता पीटर जिलेप्सी ने लिखा है जो थर्ड वर्ल्ड इकानामिक्स के अंक नं.- 407, 16-31 अगस्त 07 में प्रकाशित हुआ है। इसी लेख का कुछ हिस्सा यहाँ हम दे रहे हैं- सम्पादक)
विकासशील देशों के भ्रष्ट शासकों का भारी धान ओ.एफ.सी. में जमा रहता है। इण्डोनेशिया के तानाशाह सुहार्तो ने वर्षों इण्डोनेशिया को लूटा और उनका लगभग 35 अरब डॉलर कैमान आइलैण्ड, बाहमास, पनामा, कुक आइलैण्ड, बनाऊतु, वेस्ट समोआ स्थित ओ.एफ.सी. में रखा है। मैक्सिको के पूर्व राष्ट्रपति के भाई राडल सालिनास को सिटीबैंक ने मदद करके आफशोर ट्रस्ट खुलवाया और वहाँ गुप्त खातों में इनकी रकम पहुँचवायी। रिगी बैंक ऑफ वाशिंगटन ने चिली के पिनोशेट के लिये ओ.एफ.सी. में डमी कार्पोरेशन और गुमनाम खाते खुलवाये। अफ्रीका के कुछ गरीबतम् देशों की लूट का धन भी ओ.एफ.सी. पहुँचा। 1993 से 1998 तक नाईजीरिया के तानाशाह सानी अबाचा ने स्विट्जरलैण्ड, लक्समबर्ग, लीटेस्टीन, लंदन के ओ.एफ.सी. में अरबों डॉलर पहुंचाये। जायरे के मोबुतु से से सेको और सेन्ट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक के बादशाह ने अपने देशों को भूखे मार कर अरबों डॉलर लूटा और ओ.एफ.सी. में भेज दिया तथा उनके इस कार्य में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और बैंकों ने बड़ी मदद की। ........पूरा पढ़ें