पुलिस राज का आतंक - के बालागोपाल

यह सचमुच दुर्भाग्यपूर्ण है कि न तो सरकार और न ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग जैसी संस्थाएं पुलिसिया जुल्म के मुद्दे को तवज्जो देती दिखाई दे रही हैं। प्राय: देखा गया है कि पुलिस के पक्षपातपूर्ण रवैये और कानूनी अतिवाद के जरिये आम आदमी के मानवाधिकारों को कुचला जा रहा है। जब तक हम इस मुद्दे को पूरी गंभीरता से नहीं लेंगे, तब तक सरकारी मशीनरी बेकसूर लोगों को कानून-व्यवस्था के बहाने मुकदमों, यातनाओं और मृत्युदंडों का कोपभाजन बनाती रहेगी बता रहे हैं के बालागोपाल
यह बेहद दुखदायी है कि हमारे मुल्क में कानूनी अतिवाद के चलते होने वाली मौतों, गुमशुदगियों और हिरासत में दी जाने वाली यातनाओं से जुड़ी घटनाओं में हर साल इजाफा होता जा रहा है। अकेले आंध्र प्रदेश में ही पुलिस उत्पीड़न, हिरासत में मौत और फर्जी मुठभेड़ों के वाकिये इतने बढ़ गए हैं कि वहां का आम आदमी खासा आतंकित हो चला है। राज्य के सीमावर्ती इलाकों में जाकर कोई भी देख सकता है कि किस प्रकार कथित नक्सलवादी होने .........पूरा पढ़ें

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