शिक्षा का अधिकार, राज्य और नवउदारवादी हमला

शिक्षा का अधिकार गहरे अर्थों में एक मूल अधिकार है। यह आलेख शिक्षा के अधिकार वेफ खिलाफ खड़ी व्यवस्था की जांच-पड़ताल करता है। शिक्षा से जुड़े सवालों को राजनीति के केंद्र में लाने की जरूरत पर बल देता है। इस आलेख में उठाए गए मुद्दे राजनीतिक चर्चा और पहल-कदमी की मांग करते हैं और एक सचेत नागरिक को अपनी भूमिका तय करने में मदद करते हैं।

आज से सवा सौ साल पहले महात्मा ज्योतिराव फुले ने ब्रिटिश राज द्वारा गठित भारतीय शिक्षा आयोग (1882) को प्रस्तुत अपने ज्ञापन में एक विडंबना का जिक्र करते हुए कहा था कि सरकार का अधिकांश राजस्व तो मेहनतकश किसान-मजदूरों से आता है लेकिन इसके द्वारा दी जाने वाली शिक्षा का प्रमुख लाभ उच्च वर्ग और उच्च वर्ण उठा लेता है। महात्मा फुले की यह टिप्पणी भारत की आज की शिक्षा पर भी सटीक बैठेगी। सन् 1911 में इम्पीरियल असेम्बली में गोपाल कृष्ण गोखले ने मुफ्रत और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का विधेयक पेश किया। लेकिन यह विधेयक सामंती और नव-ध्नाढय ताकतों के विरोध ..... .. पूरा पढ़ें
साभार- सामयिक वार्ता

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