ब्लॉग के बक्से में हिंदी

ब्लॉग को हम कंप्यूटर पर लिखी जाने वाली निजी डायरी कह सकते हैं - ऐसी डायरी, जिसे हम सार्वजनिक करना चाहते हैं। हिन्दी में ब्लॉग की संख्या एक हजार से ज्यादा हो गई है। इस कंप्यूटरी डायरी को चलाने में कंप्यूटर और इंटरनेट के इस्तेमाल के अलावा कोई खर्च नहीं होता। आज हजार से ज्यादा लोग हिन्दी पर अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं और उससे कहीं ज्यादा लोग उसे पढ़ रहे हैं। हिन्दी को मिली इस तकनीकी शक्ति की सीमाएं क्या हैं और इससे पूरी होने वाली उम्मीदें कौन सी हैं? जब हिन्दी ब्लॉग पर चर्चा हो तो यह सवाल उठना वाजिब ही है कि कितने हिन्दी भाषी कंप्यूटर साक्षर हैं और निजी या कैफे के कंप्यूटर तक कितनों की पहुंच है। लेकिन यह सवाल अपने सीमित दायरे में पढ़ने-लिखने के शेष माध्यमों के लिए भी लागू होती है। हिन्दी ब्लॉग की दूसरी सीमा है इंटरनेटी हिन्दी के मानकीकरण की। हालांकि इससे जुड़ी समस्याओं के बारे में न तो हर साल हिन्दी पखवाड़ा के रूप में हिन्दी का मर्सिया पढ़ने वाले सरकारी संस्थानों ने और न ही हिन्दी के लिए जान-प्राण देने का दावा करने वाले हिन्दी मठाधीशों ने कोई कोशिश की। लेकिन यूनीकोड ने हिन्दी ब्लॉग की इस तकनीकी सीमा को लगभग दूर कर दिया है। अब बहुत तेजी से हिन्दी में ब्लॉग की संख्या बढ़ने वाली है। सीमित लोगों तक पहुंच के कारण हिन्दी ब्लॉग की अनदेखी नहीं की जा सकती। ब्लॉग-लेखन का चलन हिन्दी दुनिया के लिए भले नई चीज है, मगर इसका समाज पर कुछ तो प्रभाव पड़ेगा। कम से कम इतना कि खाता-पीता हिन्दी मध्यमवर्ग जिसके लिए सोचना-विचारना धीरे-धीरे गैरजरूरी होता जा रहा वह भूल-भटके ही सही - इंटरनेट की दुनिया में विचरते-विचरते हिन्दी के किसी उद्वेलित करने वाले ब्लॉग तक पहुंच जाए और उसे भी देश, दुनिया और समाज के बारे में सोचने की आदत लग जाए। कई तरह के असंतोष और हाशिए के लोगों की आवाज दूसरे माधयमों की तुलना में ब्लॉग पर आसानी से पहुंच सकती है। कई तरह की बहस के लिए मुख्यधारा में जगह नहीं होती। मिसाल के तौर पर न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार के बारे में बात करना हो तो, ब्लॉग एक आसान माध्यम है, क्योंकि परंपरागत माध्यम में इस तरह की चर्चा नहीं हो सकती। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि हिन्दी-जगत को ब्लॉग का यह तोहफा हिन्दी को संप्रेषण का सशक्त माध्यम बनाने को कटिबद्ध दिखने वाली सरकार का दिया हुआ नहीं है। यह कमाल है बहुत से शौकिया लोगों और अर्धव्यवसायी संस्थाओं का। साभार -सामयिक वार्ता

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