सुनवाई की हो समय-सीमा - कॉलिन गोन्साल्विस

गरीब, दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक खासकर मुसलमानों को वर्षों जेलों में सड़ने को मजबूर होना पड़ता है क्योंकि उनकी जमानत कराने वाला तक कोई नहीं। कॉलिन गोन्साल्विस का कहना है कि छोटे अपराधों के आरोपों में बंद लोगों को निजी मुचलके पर रिहाई की पुख्ता व्यवस्था हो।
आपराधिक प्रक्रिया संहिता (संशोधन अधिनियम, 2005 का राष्ट्रीय जन संचार माध्यमों में स्वागत हुआ है क्योंकि इसने ऐसे पचास हजार लोगों की रिहाई के लिए रास्ते खोल दिये हैं जिन पर मुकदमे चल रहे थे। इनमें अनेक ऐसे हैं जो वर्षों से जेलों में सड़ रहे हैं और उनकी सुनवाई शुरू भी नहीं हुई। यह संशोधन अधिनियम दरअसल 1996 और उसके बाद कॉमन कॉज नामक संस्था और राजदेव शर्मा के मामलों में उच्चतम न्यायालय के फैसलों के उलट है।...... पूरा पढ़ें

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