गोपनीयकारक – जयसिंह
गोद लेने की आड़ में बच्चों का व्यापार - गीता वरदराजन चेन्नई से
लोक अदालतें : खट्टे-मीठे अनुभव
मीर सैयद लतीफ (कश्मीर बार एसोसिएशन के सदस्य)
जन अदालतों की स्थापना का उद्देष्य मुकदमों में लगनेवाले समय को कम करना तथा सुविधा में वृध्दि करना और जल्दी निपटारा करना था। लेकिन लोक अदालतों को लेकर आम लोगों में जागरूकता की कमी है जो इस उद्देष्य को हासिल करने में एक रूकावट है। इसके अलावा वकील अपने मुवक्किल से मामले को लोक अदालतों में ले जाने से पहले सलाह नहीं करते जिसके कारण मुकदमों के निपटारे की गति काफी धीमी है। वकीलों को चाहिए कि वे संबंधित पक्षों को एक सद्भावपूर्ण समझौते के लिए प्रेरित करें और मुकदमों के निपटारे को आसान बनाएं। . . . . पूरा पढ़ें
शिक्षा में छिपा है महिला सशक्तिकरण का रहस्य - राजु कुमार
ऐतिहासिक रूप से महिलाओं को दूसरे दर्जे का नागरिक माना जाता रहा है. उन्हें सिर्फ पुरुषों से ही नहीं बल्कि जातीय संरचना में भी सबसे पीछे रखा गया है. इन परिस्थितियों में उन्हें राजनीतिक एवं आर्थिक रूप से सशक्त करने की बात बेमानी लगती है, भले ही उन्हें कई कानूनी अधिकार मिल चुके हैं. महिलाओं का जब तक सामाजिक सशक्तिकरण नहीं होगा, तब तक वह अपने कानूनी अधिकारों का समुचित उपयोग नहीं कर सकेंगी. सामाजिक अधिकार या समानता एक जटिल प्रक्रिया है, कई प्रतिगामी ताकतें सामाजिक यथास्थितिवाद को बढ़ावा देती हैं और कभी-कभी तो वह सामाजिक विकास को पीछे धकेलती हैं.
प्रश्न यह है कि सामाजिक सशक्तिकरण का जरिया क्या हो सकती हैं? इसका जवाब बहुत ही सरल, पर लक्ष्य कठिन है. शिक्षा एक ऐसा कारगर हथियार है, जो सामाजिक विकास की गति को तेज करता है. समानता, स्वतंत्रता के साथ-साथ शिक्षित व्यक्ति अपने कानूनी अधिकारों का बेहतर उपयोग भी करता है और राजनीतिक एवं आर्थिक रूप से सशक्त भी होता है. महिलाओं को ऐतिहासिक रूप से शिक्षा से वंचित रखने का षडयंत्र भी इसलिए किया गया कि न वह शिक्षित होंगी और न ही वह अपने अधिकारों की मांग करेंगी. यानी, उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बनाये रखने में सहुलियत होगी. इसी वजह से महिलाओं में शिक्षा का प्रतिशत बहुत ही कम है. हाल के वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों एवं स्वाभाविक सामाजिक विकास के कारण शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ी है, जिस कारण बालिका शिक्षा को परे रखना संभव नहीं रहा है. इसके बावजूद सामाजिक एवं राजनीतिक रूप से शिक्षा को किसी ने प्राथमिकता सूची में पहले पायदान पर रखकर इसके लिए विशेष प्रयास नहीं किया. कई सरकारी एवं गैर सरकारी आंकड़ें यह दर्शाते हैं कि महिला साक्षरता दर बहुत ही कम है और उनके लिए प्राथमिक स्तर पर अभी भी विषम परिस्थितियाँ हैं. यानी प्रारम्भिक शिक्षा के लिए जो भी प्रयास हो रहे हैं, उसमें बालिकाओं के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ निर्मित करने की सोच नहीं दिखती. महिला शिक्षकों की कमी एवं बालिकाओं के लिए अलग शौचालय नहीं होने से बालिका शिक्षा पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है और प्राथमिक एवं मिडिल स्तर पर बालकों की तुलना में बालिकाओं की शाला त्यागने की दर ज्यादा है. यद्यपि प्राथमिक स्तर की पूरी शिक्षा व्यवस्था में ही कई कमियां हैं. . . . .पूरा पढ़ें
नोवार्टिस का चीनी दवा कंपनियों और भारतीय जयचंदों से गठजोड़ -मीनाक्षी अरोड़ा
नोवार्टिस की चाल
पर दवा में अकूत मुनाफे के लालच में पिछले वर्ष स्विटज़रलैंड की नोवार्टिस कम्पनी ने एक नई चाल चली; रक्त कैंसर के इलाज में प्रयोग की जाने वाली दवा ग्लीवेक के फारमूले में कुछ बदलाव करके उसके नये कोपीराईट के लिए अर्जी दी, जो भारत सरकार ने यह कह कर नामंजूर कर दिया कि यह नया आविष्कार नहीं बल्कि पुराने फारमूले में थोड़ी सी अदला-बदली करके किया गया है। इस पर नोवार्टिस ने भारत सरकार पर मुकदमा कर दिया है कि 'भारत का यह कानून डब्ल्यूटीओ के नियमों के विरुध्द है और इस कानून को रद्द कर दिया जाना चाहिये।' पर काफी लड़ाइयों के बाद चेन्नई हाईकोर्र्ट में नोवार्टिस की याचिका खारिज कर दी। . . .
चेन्नई हाईकोर्र्ट में याचिका खारिज होने के बाद नोवार्टिस एक बार फिर भारतीय पेटेंट कानून को कुछ और दांव-पेंच के साथ चुनौती देने की तैयारी कर रही है :-
इस बार नोवार्टिस अकेली नहीं है बल्कि माशेल्कर और शमनाद बशीर जैसे जयचंदों और चीन की 'ओपीटीआर' के दबाव से मुकदमा जीतने की तैयारी की जा रही है।
रोचक मोड़ तो यह है कि चेन्नई हाईकोर्ट में खाए हुए तमाचे के बाद बौखलायी नोवार्टिस ने तुरन्त यह घोषणा कर दी कि भारत में पेटेन्ट कानूनों पर कठोर प्रतिबन्धों के चलते यह चीन में निवेश करेगी।
नोवार्टिस को जब पेटेंट की मंजूरी नहीं मिली तो उसने भारतीय जेनेरिक दवा कंपनियों सिपला आदि की दवा कीमतों को ही चुनौती देना शुरू कर दिया। हाल ही में 'द हिंदू' में सिपला को चुनौती देने वाले विज्ञापन ने इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों के नीच हथकण्डों की साजिश का पर्दाफाश कर दिया है। . . . . . पूरा पढ़ें
घटता लिंगानुपात और महिला नेत्रियाँ - लोकेन्द्रसिंह कोट
प्रबुध्द नागरिकता और जमीनी प्रजातंत्र में महिलाएँ - लोकेन्द्रसिंह कोट
गाँवों में जबरन घुसता बाजार और महिलाएँ - लोकेन्द्रसिंह कोट
नेतृत्व ने बदले नारी के तेवर - लोकेन्द्रसिंह कोट
जमीने बंदूक की जोर से छीनी जा रही हैं - सुमित सरकार
संकट में हमारी जमीन - शिराज केसर
एस.इ.जेड (सेज) का सच -प्र्भात कुमार
संशोधन नहीं, सेज रद्द करना ही हल है -मीनाक्षी अरोरा
आप्रवासियों के लिए निजी जेल - दीपा फर्नाण्डीज, प्रस्तुति-अफलातून
टिटनेस वैक्सीन बनाम प्रजनन-रोधी वैक्सीन - मीनाक्षी अरोड़ा
एचसीजी और एचसीजी रोधी प्रतिरक्षी- एचसीजी हारमोन प्राकृतिक रूप् से यह बताता है कि कोई स्त्री गर्भवती है या नहीं, इसके अतिरिक्त यह गर्भनाल में प्रसव के लिए आवश्यक हारमोंस को छोड़कर अन्य सभी को हटा देता है। एचसीजी का बढ़ता हुआ स्तर गर्भावस्था को निश्चित करता है। आमतौर पर जब महिलाएं गर्भधारण का परीक्षण कराती हैं तो वह परीक्षण एचसीजी की उपस्थिति जानने के लिए ही किया जाता है। लेकिन जब एचसीजी को टिटनेस टॉक्सोइड के साथ शरीर में पहुंचाया जाता है तब न केवल टिटनेस प्रतिरोधी पैदा होने लगते हैं बल्कि एचसीजी के प्रतिरोधी भी पैदा होने लगते हैं .. . .. . . .पूरा पढ़ें
पुलिस संस्था और संस्थागत साम्प्रदायिकता - कोलिन गोंजाल्विस
आयोग- 1961 से एक के बाद एक आयोग बना, सभी ने पुलिस को दोषी करार दिया। 1961 में जबलपुर, सागर, दामोह और नरसिंहपुर में हुए दंगों पर जस्टिस श्रीवास्तव जांच आयोग ने अपने अध्ययन में पाया कि इंटलिजेंस डिपार्टमेंट पूरी तरह अयोग्य है और लॉ एण्ड ऑर्डर अधिकारियों की जांच प्रक्रिया में लापरवाही की वजह से ही अपराधी अभियोग से छूट जाता था। . . . . . . . . .पूरा पढ़ें
नेतृत्व के श्रेष्ठ विकल्प के रूप में उभर रही हैं महिलाएँ - लोकेन्द्रसिंह कोट
लोकतंत्र का विकेन्द्रीकरण और महिला - लोकेन्द्रसिंह कोट
भारत में पहली “विश्व बैंक समूह पर स्वतंत्र जन न्यायाधिकरण”का फैसला
हम 12 ज्यूरी सदस्यों ने पूरे भारत के प्रभावित लोगों, 60 जमीनी विशेषज्ञों और अकादमिकों, समाजसेवी समूहों और समुदायों के साक्ष्यों और बयानों को चार दिनों से सुना है। 26 भिन्न-भिन्न आर्थिक और सामाजिक विकास के क्षेत्रों से, जिसका फैलाव मैक्रो अर्थशास्त्र से आर्थिक नीतियों तक है; के समुदायों के प्रतिनिधियों ने बयान दिया कि विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित परियोजनाएं उन्हें नुकसान पहुंचाती हैं और निर्धन बनाती हैं। हमारे सदस्यों में उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायधीश, वकील, लेखक वैज्ञानिक, धार्मिक नेता, भारत सरकार के पूर्व अधिकारी शामिल हैं। हमने नोट किया कि विश्व बैंक के दिल्ली कार्यालय ने दो सप्ताह पहले न्यायाधिकरण में शामिल होने का आमंत्रण प्राप्त कर लिया था, लेकिन उन्होंने प्रक्रिया में शामिल होने में रुचि नहीं दिखाई। . . . . . . पूरा पढ़ें
ऐसे कैसे चलेगा मी लॉर्ड ! - भंवर मेघवंशी
जायजा राज्यों का - सूचना के अधिकार कानून लागू करने में भी मनमर्जी
अन्याय के खिलाफ जनता का हथियार -- गोपालकृष्ण गांधी
इराकी शासन में फैला भ्रष्टाचार: अमरीका उलझा
नंदीग्राम में जारी माकपा के हिंसक हमले का समाचार कवरेज से मीडिया को सीपीएम के कैडरों द्वारा प्रतिबंधित करने के संबंध में
विषय - नंदीग्राम में जारी माकपा के हिंसक हमले का समाचार कवरेज से मीडिया को सीपीएम के कैडरों द्वारा प्रतिबंधित करने के संबंध में
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महाशय,
हम सब पत्रकार हैं और 14 मार्च के नंदीग्राम के जनसंहार के बाद हमने नंदी ग्राम पर केंद्री त शोधपरक लेखन /रिपोर्ट लेखन किया है । यह पत्र हम नंदीग्राम में जारी हिंसक कार्रवाई के कवरेज के अधिकार के लिए लिख रहे हैं । नंदीग्राम के गांव से आ रही फोन सूचनाओं के अनुसार 2 नवंबर से नंदीग्राम दो और नंदीग्राम एक को घेर कर सीपीएम के सशस्त्र दस्ते हमला कर रहे हैं। यह जानकारी कितनी सही है यह जानने के लिए 8 नवम्बर को जब कुछ पत्रकार समाज सेविका मेधा पाटकर के साथ नंदीग्राम जा रहे थे तो कापसऐटिया (मेहिशादल) के पास मेधा पाटकर और मीडियाकर्मियों पर भी हमले हुए। आलोक बनर्जी (इंडिया टुडे अंग्रेजी) और वापन साहू ( 24 घंटे बंगाल चैनल) को पीटा गया।
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नंदीग्राम में मीडिया के प्रवेश को सीपीएम ने घोषित तरीके प्रतिबंधित कर दिया है और नंदीग्राम में हिंसक हमले जारी हैं। देश की मीडिया इस समय नंदीग्राम के भीतर नहीं है और कोलकाता से नंदीग्राम की राह में र ेवापा डा और चंडीपुर में सीपीएम के कैडर लाल झंडे के साथ सड़क पर बेरीकेट कर रोक रहे हैं। हमें फोन से सूचना आ रही है कि 10 और 11 नवंबर के बीच नंदीग्राम में निहत्थे लोगों पर सीपीएम कैडरों ने हमला किया और हमले में 40 से ज्यादा लोग मारे गए हैं। हम इस सूचना की पुष्टि के लिए देश की मीडिया को नंदीग्राम में प्रवेश की अनुमति चाहते हैं। हम चाहते हैं कि राष्ट्रीय मीडिया को नंदीग्राम प्रवेश की छूट दी जाए और मीडिया को सुरक्षा की गारंटी दी जाए। 10 नवम्बर को तैसाली बाजार के पास 20 हजार से ज्यादा निहत्थे लोगों के जुलूस पर सीपीएम कैडरों के हमले में कितने लोग मारे गए हैं यह जांच-परख का सवाल है।
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लेकिन नंदीग्राम कॉलेज में विस्थापित होकर 25000 से ज्यादा लोग शरणागत हैं , यह खबर सही है क्योंकि सोनाचूड़ा से भागकर आए लोगों से कोलकाता में हमारी बात हुई है। सोनाचूड़ा के थंकर खटुवा के अनुसार उसने 10 नवंबर को अपनी आंखों से बीस के करीब लाशों को रिक्शा ठेला से सीपीएम कैंडरों को ले जाते हुए देखा है। नंदीग्राम में जनसंहार हुआ है , लेकिन देश को यह खबर इसलिए मालूम नहीं है कि मीडिया का प्रवेश नंदीग्राम में प्रतिबंधित है।
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हम नंदीग्राम की स्थिति का कवरेज करने का एक सिर्फ अपने लिए नहीं संपूर्ण मीडिया समूह के लिए चहाते हैं और कुछ पत्रकारों का नाम सूचीबध्द कर रहे हैं , जिन्हें रोका गया और पीटा गया है। ज्ञात हो कि एक दर्जन से ज्यादा पत्रकार नंदीग्राम प्रवेश की राह सीपीएम कैडरों के द्वारा पीटे गए हैं।
1- गोरंगो हाजरा (तारा टी. वी. बांग्ला चैनल) हाथ तोड़ दिया।
2-महुआ साजा (तारा टी. वी. की चीफ रिपोर्टर) को पीटा गया।
3-चप्पन बसु ( 24 घंटे बांग्ला)
4-आलोक बनर्जी (इंडिया टुडे अंग्रेजी)
5-अकबर हुसैन मलिक ( 24 घंटे बांग्ला)
6-पवन साहू (आकाश गंगा बांग्ला)
7-दयाल साहू (कोलकाता टीवी)
8-असरफुल हुसैन (स्टार आनंद)
हमारी जानकारी के अनुसार सीपीएम कैडरों के शिकार पत्रकारों ने अगर पुलिस के प्राथमिकी दर्ज करवाने की कोशिश की तो प्रथमिक नहीं ली गई या जान के भय से किसी ने प्राथमिकी की हिम्मत नहीं जुटाई। प्रेस काउंसिल को मीडिया के समाचार संकलन के हक पर प्रतिबंध को गंभीरता से लेना चाहिए और दोषी सीपीएम के खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा करनी चाहिए। आपकी कार्रवाई के लिए हम प्रेस कौंसिल के प्रति आभारी होंगे।
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सादर,
अपेक्षित
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रामबहादुर राय (प्रथम प्रवक्ता )
पुष्पराज (स्वतंत्र पत्रकार) मोबाइल नंबर 09431862080 (कोलकाता )
शिराज केसर ( पीएनएन) मोबाइल नंबर 9211530510 ( दिल्ली)
संजय तिवारी ( युगवार्ता) मोबाइल नंबर 9312440606 ( दिल्ली)
सोयाबीन नहीं किसान का जीवन चट किया इल्लियों ने - सचिन कुमार जैन
भूमण्डलीकरण और बैगा महिला - सचिन कुमार जैन (विकास संवाद)
क्यों है बीटी बैंगन एक खतरा? -सचिन जैन

भारत के लिए गहरे ढांचे की एक परिभाषा - प्रो. अमित भादुरी
सहरिया आदिवासियों की व्यथा कथा - दो
मध्यप्रदेश के सहरिया आदिवासियों के लिये जीवन का सबसे बड़ा अर्थ है उपेक्षा। राज्य की सबसे पिछड़ी हुई जनजाति के लोगों की जीवन में भुखमरी, कुपोषण और बीमारियों का चक्रवात ठीक उसी तरह निरन्तरता से आता है, जिस निरन्तरता से व्यापक समाज में अष्टमी, नवमी और चतुर्दशी आती है। यूं तो सहरिया आदिवासी स्वतंत्रता के बाद से ही सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक उपेक्षा का दंश झेल रहे हैं किन्तु वर्ष 2001 से यह समुदाय लाल सुर्खियों में रहा है और सुर्खियों में आने का कारण रहा है भुखमरी और बीमारी के कारण इनका सिमटता अस्तित्व। . . . . . . . पूरा पढ़ें
सहरिया आदिवासियों की व्यथा कथा - एक दर्दनाक हकीकत - एक
प्रसव पीड़ा के व्यवसायीकरण की अमानवीय कोशिश
महिला स्वास्थ्य : हर क्षण चरित्र पर सवाल - सचिन कुमार जैन
जागीर में मिलता है मैला ढोने का काम - सचिन कुमार जैन (विकास संवाद)
दलितों पर बढ़ता उत्पीड़न - राजु कुमार
औरत के डाकिन होने के मायने
अगर इतिहास को रचनात्मक होना है - हावर्ड ज़िन
ब्रिटेन के भुला दिए गए हत्याकांड - जॉर्ज मॉन्बिऑट
2001 में प्रकाशित अपनी किताब लेट विक्टोरियन होलोकॉस्ट्स (उत्तर विक्टोरियाई हत्याकांड) में माइक डेविस हमें उन अकालों की कहानी सुनाते हैं जिनमें 1.2 से 2.9 करोड़ भारतीय मारे गए (1)। वे दिखाते हैं कि इन लोगों की ब्रिटेन की सरकारी नीति द्वारा हत्या की गई थी।जब एक एल नीनो अकाल ने 1876 में दक्खन के पठार के किसानों को दरिद्र बना दिया, तब भारत में चावल और गेहूँ की पैदावार ज़रूरी मात्रा से ऊपर हुई थी। लेकिन वाइसरॉय, लॉर्ड लिटन, ने ज़ोर दिया कि इसके इंग्लैंड को निर्यात में कोई बाधा नहीं आनी चाहिए। 1877 और 1878 में, अकाल के चरम पर, अनाज व्यापारियों ने रिकॉर्ड 64 लाख सेर गेहूँ का निर्यात किया। जब किसान भूख से मरने लग गए, ..................पूरा पढ़ें
प्रॉपेगंडा और मतारोपण : नोम चोम्स्की