प्रॉपेगंडा और मतारोपण : नोम चोम्स्की

विशेष रूप से बुद्धिमान होना तो ज़रूरी नहीं है, पर विशेष सुविधाएँ ज़रूर चाहिए होती हैं। ये लोग सही हैं। आपके पास विशेष सुविधाएँ तो होनी ही चाहिएँ, जो कि हम लोगों के पास हैं। यह जायज़ नहीं है, पर सुविधाएँ तो हमें मिली ही हैं। साधन, प्रशिक्षण, समय, और अपने जीवन पर नियंत्रण। मैं चाहे सौ घंटे प्रति सप्ताह काम करूँ, पर ये सौ वही हैं जो मैं चुनता हूँ। यह दुर्लभ सुविधा है। जनसंख्या का एक छोटा सा हिस्सा ही इसे पा सकता है, साधनों और प्रशिक्षण की तो बात ही छोड़ दें। ऐसा अपने बल पर करना बहुत ही मुश्किल है। लेकिन हमें इसे बढ़ा-चढ़ा के नहीं देखना चाहिए। ऐसा सर्वश्रेष्ठ ढंग से करने वाले बहुत से लोग सुविधासंपन्न नहीं हैं, जिसका एक कारण यह है कि उनके पक्ष में भी कई बातें हैं। अच्छी शिक्षा से होकर न गुज़रे होना, मतारोपण की बाढ़ से बचे होना, जो कि शिक्षा ज़्यादातर होती है, और मतारोपण तथा नियंत्रण के इस तंत्र का हिस्सा बनने यानि इसे अपने सोचने का तरीका बना लेने से बचे रहना। मतारोपण से मेरा मतलब है नर्सरी स्कूल से लेकर व्यावसायिक जीवन तक। इस सब का हिस्सा न होने का मतलब है कि आप कुछ स्वतंत्र हैं। तो सुविधा और प्रभुत्व की इस व्यवस्था से बाहर रहने के फ़ायदे भी हैं। लेकिन यह सच है कि जो दो वक्त का खाना जुटाने के लिए पचास घंटे प्रति सप्ताह काम करता है उसके पास वह सुविधा और अवसर नहीं है जो हमारे पास है। इसीलिए तो लोग साथ मिल कर काम करते हैं। कामगारों की शिक्षा के लिए संघ बनाने का उद्देश्य यही होता था, जो कि अक्सर मज़दूर आंदोलनों का एक पक्ष होता था। लोगों के लिए मिल कर एक-दूसरे को प्रोत्साहित करने के तरीके होते थे। ...............पूरा पढ़ें

मुद्दे-स्तम्भकार