2002 के गुजरात दंगों में हुई घटनाओं में पुलिस की शर्मनाक भूमिका ने एक बार फिर यह साबित किया था कि संस्थागत साम्प्रदायिकता जैसे मुद्दों से देश को निपटना होगा। केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों द्वारा जांच के लिए गठित किये गए विभिन्न न्यायिक आयोगों के अध्ययन और अनुशंसा में तथा राष्ट्रीय एकता परिषद और राष्ट्रीय पुलिस आयोग की छठीं रिपोर्ट में पुलिस की संदिग्ध भूमिका सामने आई है। जब-जब साम्प्रदायिकता की आग भड़कती है तब-तब पुलिस की संदिग्ध भूमिका सामने आई लेकिन किसी भी सरकार ने पुलिस के दुराचार के खिलाफ शिकायतें सुनने के लिए कोई संस्थागत व्यवस्था नहीं की।
आयोग- 1961 से एक के बाद एक आयोग बना, सभी ने पुलिस को दोषी करार दिया। 1961 में जबलपुर, सागर, दामोह और नरसिंहपुर में हुए दंगों पर जस्टिस श्रीवास्तव जांच आयोग ने अपने अध्ययन में पाया कि इंटलिजेंस डिपार्टमेंट पूरी तरह अयोग्य है और लॉ एण्ड ऑर्डर अधिकारियों की जांच प्रक्रिया में लापरवाही की वजह से ही अपराधी अभियोग से छूट जाता था। . . . . . . . . .पूरा पढ़ें
आयोग- 1961 से एक के बाद एक आयोग बना, सभी ने पुलिस को दोषी करार दिया। 1961 में जबलपुर, सागर, दामोह और नरसिंहपुर में हुए दंगों पर जस्टिस श्रीवास्तव जांच आयोग ने अपने अध्ययन में पाया कि इंटलिजेंस डिपार्टमेंट पूरी तरह अयोग्य है और लॉ एण्ड ऑर्डर अधिकारियों की जांच प्रक्रिया में लापरवाही की वजह से ही अपराधी अभियोग से छूट जाता था। . . . . . . . . .पूरा पढ़ें