घटता लिंगानुपात और महिला नेत्रियाँ - लोकेन्द्रसिंह कोट

कितना विचित्र लगता है कि जो सुख-सुविधाएँ हमे आसानी से मिल जाना थी उसके लिए हमे भारी जद्दोजहद करना पड़ती है और आज तीव्र विकास के चलते हमे जहाँ होना चाहिये वहाँ नहीं पहुँच पाने का अवसाद झेलना पड़ता है। इन सब के पीछे सबसे महत्वपूर्ण एवं विकराल समस्या हमारी जनसंख्या में अंधाधुंध बढ़ोतरी है। हमारे देश की उतरोत्तर प्रगति में हमेशा से बाधक बनी रही जनसंख्या विस्फोट की समस्या इन दिनों अपने नए-नए जाल फैलाती जा रही है। विशेषकर अशिक्षा, जागरूकता के अभाव और समस्या की भयावहता से अपरिचित होने के कारण ग्रामीण जनसंख्या में भारी बढ़ोतरी हमारे सारे विकास कार्यक्रमों को पीछे धकेल रही है। पंचायती राज के तहत विकेन्द्रीकृत जमीनी स्तर की प्रशासन व्यवस्था तो लागू भी कर दी गई है और जनसंख्या में कमी लाने के प्रावधान भी विभिन्न तरीकों से किए जा रहे हैं। घर में अधिक जनसंख्या और उससे होने वाले प्रतिप्रभावों से महिलाएँ अधिक परिचित होती हैं इसलिए शासन द्वारा किए गए 33 प्रतिशत आरक्षण के द्वारा महिलाएँ भी जमीनी स्तर के प्रशासन से जुड़कर राज-काज में हिस्सा ले रही हैं, और देखा जाय तो स्थितियाँ निराशाजनक भी नहीं है। . . . . . पूरा पढ़ें

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