भारत की अधिकांश महिलाऐं तो अनपढ़ है, उनमें तो अधिकांश घर की चारदीवारी से कभी बाहर नहीं निकलती है। यदि ऐसी महिलाएं चुनाव में जीत भी गई तो क्या वे पंचायत का कार्यभार सुचारू रूप से चला पाएंगी? इस प्रकार के अनेक प्रश्न लोगों के मन में उठ रहे थे, किंतु चुनाव के बाद जब बहुत बड़ी संख्या में महिलाएं चयनित होकर पंचायतों के नेतृत्व हेतु आ गई तो ये शंकाएं स्वत: समाप्त हो गई। वर्तमान संदर्भों में देखा जाय तो बिहार के बाद मध्यप्रदेश में आने वाले पंचायती चुनावों में यह प्रतिशत बढ़ाकर 50 कर दिया है और यह सब इसलिए भी हुआ है कि महिलाओं की शक्ति को अब पहचान मिल चुकी है और उन्हौने कहीं अधिक संवेदनशीलता के साथ अपने पदों पर रहकर न्याय किया है। आज भले ही पंचायतों में महिलाओं की स्थिति को लेकर प्रश्न उठाया जा रहा है, परंतु यह धारणा बिल्कुल गलत है कि महिलाएं कोई ज़िम्मेदारी उठाने को तैयार नहीं है या उनमें निर्णय लेने की क्षमता नहीं है। वास्तविकता यह है कि अब तक महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित रखा गया था और सामाजिक, राजनीतिक क्षेत्र में बढ़ते मार्ग में अड़चने पैदा करने का ही प्रयास किया गया। . . . . . . .पूरा पढ़ें