ब्रिटेन के भुला दिए गए हत्याकांड - जॉर्ज मॉन्बिऑट

ज़ुल्म? कौनसे ज़ुल्म? जब तुर्की में कोई लेखक इस शब्द का प्रयोग करता हैं, तुर्की में हर कोई जानता है कि वह क्या कह रहा है, चाहे वे कितने ही ज़ोर-शोर से कहें कि ऐसा कुछ नहीं हुआ। लेकिन ब्रिटेन में अधिकतर लोग आपको खाली निगाहों से देखेंगे, बिना समझे। तो मैं आपके दो ऐसे उदाहरण देता हूँ, जिनके बारे में उतने ही सारे दस्तावेज़ हैं जितने आर्मेनियाई क़त्ले-आम के बारे में।
2001 में प्रकाशित अपनी किताब लेट विक्टोरियन होलोकॉस्ट्स (उत्तर विक्टोरियाई हत्याकांड) में माइक डेविस हमें उन अकालों की कहानी सुनाते हैं जिनमें 1.2 से 2.9 करोड़ भारतीय मारे गए (1)। वे दिखाते हैं कि इन लोगों की ब्रिटेन की सरकारी नीति द्वारा हत्या की गई थी।जब एक एल नीनो अकाल ने 1876 में दक्खन के पठार के किसानों को दरिद्र बना दिया, तब भारत में चावल और गेहूँ की पैदावार ज़रूरी मात्रा से ऊपर हुई थी। लेकिन वाइसरॉय, लॉर्ड लिटन, ने ज़ोर दिया कि इसके इंग्लैंड को निर्यात में कोई बाधा नहीं आनी चाहिए। 1877 और 1878 में, अकाल के चरम पर, अनाज व्यापारियों ने रिकॉर्ड 64 लाख सेर गेहूँ का निर्यात किया। जब किसान भूख से मरने लग गए, ..................पूरा पढ़ें

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