शिक्षा में छिपा है महिला सशक्तिकरण का रहस्य - राजु कुमार

महिला सशक्तिकरण की जब भी बात की जाती है, तब सिर्फ राजनीतिक एवं आर्थिक सशक्तिकरण पर चर्चा होती है पर सामाजिक सशक्तिकरण की चर्चा नहीं होती.
ऐतिहासिक रूप से महिलाओं को दूसरे दर्जे का नागरिक माना जाता रहा है. उन्हें सिर्फ पुरुषों से ही नहीं बल्कि जातीय संरचना में भी सबसे पीछे रखा गया है. इन परिस्थितियों में उन्हें राजनीतिक एवं आर्थिक रूप से सशक्त करने की बात बेमानी लगती है, भले ही उन्हें कई कानूनी अधिकार मिल चुके हैं. महिलाओं का जब तक सामाजिक सशक्तिकरण नहीं होगा, तब तक वह अपने कानूनी अधिकारों का समुचित उपयोग नहीं कर सकेंगी. सामाजिक अधिकार या समानता एक जटिल प्रक्रिया है, कई प्रतिगामी ताकतें सामाजिक यथास्थितिवाद को बढ़ावा देती हैं और कभी-कभी तो वह सामाजिक विकास को पीछे धकेलती हैं.
प्रश्न यह है कि सामाजिक सशक्तिकरण का जरिया क्या हो सकती हैं? इसका जवाब बहुत ही सरल, पर लक्ष्य कठिन है. शिक्षा एक ऐसा कारगर हथियार है, जो सामाजिक विकास की गति को तेज करता है. समानता, स्वतंत्रता के साथ-साथ शिक्षित व्यक्ति अपने कानूनी अधिकारों का बेहतर उपयोग भी करता है और राजनीतिक एवं आर्थिक रूप से सशक्त भी होता है. महिलाओं को ऐतिहासिक रूप से शिक्षा से वंचित रखने का षडयंत्र भी इसलिए किया गया कि न वह शिक्षित होंगी और न ही वह अपने अधिकारों की मांग करेंगी. यानी, उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बनाये रखने में सहुलियत होगी. इसी वजह से महिलाओं में शिक्षा का प्रतिशत बहुत ही कम है. हाल के वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों एवं स्वाभाविक सामाजिक विकास के कारण शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ी है, जिस कारण बालिका शिक्षा को परे रखना संभव नहीं रहा है. इसके बावजूद सामाजिक एवं राजनीतिक रूप से शिक्षा को किसी ने प्राथमिकता सूची में पहले पायदान पर रखकर इसके लिए विशेष प्रयास नहीं किया. कई सरकारी एवं गैर सरकारी आंकड़ें यह दर्शाते हैं कि महिला साक्षरता दर बहुत ही कम है और उनके लिए प्राथमिक स्तर पर अभी भी विषम परिस्थितियाँ हैं. यानी प्रारम्भिक शिक्षा के लिए जो भी प्रयास हो रहे हैं, उसमें बालिकाओं के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ निर्मित करने की सोच नहीं दिखती. महिला शिक्षकों की कमी एवं बालिकाओं के लिए अलग शौचालय नहीं होने से बालिका शिक्षा पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है और प्राथमिक एवं मिडिल स्तर पर बालकों की तुलना में बालिकाओं की शाला त्यागने की दर ज्यादा है. यद्यपि प्राथमिक स्तर की पूरी शिक्षा व्यवस्था में ही कई कमियां हैं. . . . .पूरा पढ़ें

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