प्राय: यह देखा गया है कि सामाजिक कार्यकर्ताओं को राष्ट्रीय हितों के लिए खतरा कहकर उनके खिलाफ कानूनों को हथियार बनाकर राज्य उनका दमन कर रही है। आजादी के साठ साल के बाद भी आज आम आदमी संगठन, वकील, पत्रकार, चिकित्सक और विभिन्न स्वतंत्रता और न्यायप्रेमी लोग अपने आपको सुरक्षित महसूस नहीं करते।
जब दिल्ली में आजादी का जश्न मनाया जा रहा था, उस समय एक सामाजिक कार्यकर्ता 'रोमा', आजादी की सालगिरह पर मिर्जापुर की जेल में कैद की गयी थी। पिछले दो दशकों से रोमा कैमूर क्षेत्र महिला मजदूर किसान संघर्ष समिति के बैनर तले समाज के कमजोर तबके, आदिवासी और दलितों के बीच काम कर रही हैं और नेशनल फोरम ऑव पीपुल एंड फारेस्ट वर्कर्स समिति की सदस्या भी हैं। उन्हें तीन अगस्त को उत्तर प्रदेश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और बाद में उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) लगा दिया था।
जब दिल्ली में आजादी का जश्न मनाया जा रहा था, उस समय एक सामाजिक कार्यकर्ता 'रोमा', आजादी की सालगिरह पर मिर्जापुर की जेल में कैद की गयी थी। पिछले दो दशकों से रोमा कैमूर क्षेत्र महिला मजदूर किसान संघर्ष समिति के बैनर तले समाज के कमजोर तबके, आदिवासी और दलितों के बीच काम कर रही हैं और नेशनल फोरम ऑव पीपुल एंड फारेस्ट वर्कर्स समिति की सदस्या भी हैं। उन्हें तीन अगस्त को उत्तर प्रदेश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और बाद में उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) लगा दिया था।
रोमा का अपराध
वे अपने तीनों साथियों शांता भट्टाचार्य, ललिता देवी और श्यामलाल पासवान के साथ मिलकर झारखंड और मध्यप्रदेश की सीमा से जुड़े उत्तर प्रदेश के कैमूर क्षेत्र में वनवासियों और भूमिहीन आदिवासियों और दलितों के साथ काम कर रही हैं। उन्हें सोनभद्र जिले के राबर्टगंज से पुलिस ने उस समय गिरफ्तार किया, जब वे तीन और पांच अगस्त को हाल ही में पारित हुए 'शेडयूल्ड ट्राइव्स एंड अदर ट्रेडिशनल फारेस्ट ड्वेलर्स एक्ट 2006' को लागू करने के लिए अभियान चला रही थी।