दो-तीन साल पहले एक खबर निकली थी कि पंजाब के एक गांव ने गांव की सीमा पर इश्तहार लगा दिया है कि 'यह गांव बिकाऊ है।' गांव के हर किसान पर इतना कर्ज हो गया था कि उसे चुकाना नामुमकिन हो गया था। इसीलिए इश्तहार लगाने की मजबूरी हो गई थी। पिछले दो साल में हवा इतनी बदली कि हरित क्रांति के महानायक पंजाब के पटियाला में संपन्न किसान पंचायत में दबे या मुखर स्वर में एक ही मन-मन की आवाज थी कि जमीन के पैसे किस तरकीब से ज्यादा से ज्यादा मिल सकते हैं? अपनी हेकड़ी के लिए मशहूर हरियाणा से भी वही 'मन की आवाज' सुनाई दे रही थी। 'काश, मेरे पास भी दो बीघा जमीन पैर रखने के लिए होती' की कोशिश न जाने कहां विलीन हो गई, किसी को पता भी नहीं चला। सरकारी सर्वे बताते हैं कि सौ में चालीस किसान कोई दूसरा धंधा करने के इच्छुक हैं।