भारत की बढ़ती ऊर्जा की मांग को देखकर यह पुरानी ज्ञानोक्ति याद आ गयी। कस्तूरी हिरन को सुगन्ध से पता चल जाता है कि कस्तूरी कहीं है, पर वह उसे सारे जंगल में खोजता हुआ भागता रहता है, उसके संज्ञान में यह बात नहीं आती कि कस्तूरी उसकी नाभि के अन्दर रखी हुई है। भारत सरकार ऊर्जा के लिए अमरीका के दरवाजे पर खड़ी है इस उम्मीद में कि वहाँ से न्यूक्लियर ईधन और तकनीकी मिल जाय, जिससे देश में 30 न्यूक्लियर बिजली के कारखाने खड़े किये जा सकें। ऊर्जा के लिए उसे ईरान से वार्ता करनी पड़ रही है, पाकिस्तान को भी मनाना पड़ रहा है इसलिए कि ईरान की गैस पाकितान में होती हुई पाइप लाइन से भारत पहुँच सके। इस सारे भटकाव में भारत भूल गया है कि उसके पास खुद ऊर्जा के भण्डार भरे हैं।
मामला अमरीका से न्यूक्लियर समझौते का भारत ऊर्जा इकट्ठा करने के लिए कैसे भटक रहा है, पहले इसकी चर्चा कर लें। 18 जुलाई 2005 को अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज बुश और भारत के नागरिक ऊर्जा सहयोग और व्यापार का प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के बीच वार्ता में सौदा हुआ कि जिसके तहत भारत अमरीका से परमाणु बिजली बनाने के लिए यूरेनियम न्यूक्लियर टैक्नौलोजी और मशीनरी खरीद सकेगा जिससे वह देश की बिजली की बढ़ती जरूरत को पूरा करने के लिए 30 पावर प्लांट लगायेगा।
मामला अमरीका से न्यूक्लियर समझौते का भारत ऊर्जा इकट्ठा करने के लिए कैसे भटक रहा है, पहले इसकी चर्चा कर लें। 18 जुलाई 2005 को अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज बुश और भारत के नागरिक ऊर्जा सहयोग और व्यापार का प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के बीच वार्ता में सौदा हुआ कि जिसके तहत भारत अमरीका से परमाणु बिजली बनाने के लिए यूरेनियम न्यूक्लियर टैक्नौलोजी और मशीनरी खरीद सकेगा जिससे वह देश की बिजली की बढ़ती जरूरत को पूरा करने के लिए 30 पावर प्लांट लगायेगा।