आईएमएफ और विश्वबैंक दुनिया के सबसे अमीर जी-7 के देशों -अमरीका, ब्रिटेन,जापान,जर्मनी, फ्रांस, कनाडा और इटली की सरकारों द्वारों नियंत्रित होते हैं, इन संस्थाओं के बोर्ड पर 40 फीसदी से भी ज्यादा नियंत्रण धनी देशों का ही रहता है। इनका काम तथाकथित 'तीसरी दुनिया' या ग्लोबल साऊथ के देशों और पूर्व सोवियत ब्लॉक की 'संक्रमणकालीन अर्थव्यवस्था' पर अपनी आर्थिक नीतियों को थोपना है।
एक बार देश इन बाहरी कंर्जो के चुंगल में फंस जाते हैं तो उन्हें फिर कहीं कोई क्रेडिट या कैश नहीं मिलता, जैसे अधिकांश अफ्रीका, एशिया, लातिन अमरीका और कैरेबियाई देश कर्जे में फंसे हैं तो वे इन्हीं अन्तरराष्ट्रीय संस्थाओं के पास जाने के लिये मजबूर हो गए हैं नतीजतन उन्हें वे सब शर्तें माननी पड़ती है, जो बैंक करने के लिये कहता है कोई भी देश कर्जे की समस्याओं से उबर नहीं पाया है, बल्कि बहुत से देशों की हालत तो पहले से भी बदतर हो गई है, विश्वबैंक-आईएमएफ से सहायता लेने के बाद तो कर्ज और भी बढ़ गया है।