संदर्भ- पानी का संकट
1857 के शहीदों को याद करते हुए आजादी की जंग का जश्न मना रहे हैं लेकिन नये प्रकार की आ रही गुलामी से हम बेखबर हैं। जीवन के आधार जल, जंगल, जमीन, अन्न व खुदरा व्यापार और नदियों पर कंपनियों का अधिकार हो रहा है। हमारा जल दूसरों के नियंत्रण में जा रहा है। बोतलबंद पानी दूध से भी महंगा बिक रहा हैं।
सन् 2002 की बनी जलनीति में सरकार ने प्रकृति प्रदत्त पानी का मालिकाना हक कम्पनियों को दे दिया है- जो पानी के साझे हक को खत्म करके किसी एक व्यक्ति या कंपनी को मालिक बनाती है। हमारा मानना है कि नई जलनीति ईस्ट इंडिया कंपनी की गुलामी से और अधिक भयानक गुलामी के रास्ते खोलती है। ईस्ट इंडिया कंपनी ने हमारी जमीन पर नियंत्रण करके अंग्रेजी राज चलाया था, आज बहुराष्ट्रीय कंपनियां पानी को अपने कब्जे में करने में जुटी हैं और सरकारें पानी का मालिकाना हक कंपनियों को देकर नई गुलामी को पुख्ता करने में लगी हैं।
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1857 के शहीदों को याद करते हुए आजादी की जंग का जश्न मना रहे हैं लेकिन नये प्रकार की आ रही गुलामी से हम बेखबर हैं। जीवन के आधार जल, जंगल, जमीन, अन्न व खुदरा व्यापार और नदियों पर कंपनियों का अधिकार हो रहा है। हमारा जल दूसरों के नियंत्रण में जा रहा है। बोतलबंद पानी दूध से भी महंगा बिक रहा हैं।
सन् 2002 की बनी जलनीति में सरकार ने प्रकृति प्रदत्त पानी का मालिकाना हक कम्पनियों को दे दिया है- जो पानी के साझे हक को खत्म करके किसी एक व्यक्ति या कंपनी को मालिक बनाती है। हमारा मानना है कि नई जलनीति ईस्ट इंडिया कंपनी की गुलामी से और अधिक भयानक गुलामी के रास्ते खोलती है। ईस्ट इंडिया कंपनी ने हमारी जमीन पर नियंत्रण करके अंग्रेजी राज चलाया था, आज बहुराष्ट्रीय कंपनियां पानी को अपने कब्जे में करने में जुटी हैं और सरकारें पानी का मालिकाना हक कंपनियों को देकर नई गुलामी को पुख्ता करने में लगी हैं।
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