विश्वबैंक और मानवाधिकार -एरिक टुसेन्ट

जब मैं बैंक में आया तब हमें corruption शब्द का उल्लेख करने की अनुमति नहीं थी, इसे ‘c’ शब्द कहा जाता था, लेकिन हमें ‘r’ यानी ‘right’ शब्द का उल्लेख करने की जरूरत है।- जेम्स बोल्फेन्सोह्न (1 मार्च, 2004)
मानव अधिकारों का सवाल कभी विश्वबैंक की प्राथमिक चिन्ता नहीं रहे हैं। बैंक द्वारा लगाई गई शर्तों में 'निजी संपत्ति पर व्यक्तिगत अधिकार' का एक अधिकार अकेला ही सभी पर भारी पड़ रहा है जो व्यवहारिक रूप धन्ना-सेठों को मुनाफा पहुंचाने के लिए काम करता है, ये धन्ना सेठ कोई धनी व्यक्ति या राष्ट्रीय और बहुराष्ट्रीय कंपनियां हो सकती हैं।
विश्वबैंक की शर्तों में जनता के सामूहिक अधिकारों का कोई जिक्र तक नहीं है। अगर विश्व बैंक में कहीं मानव अधिकारों पर जरा भी ध्यान दिया जाता है तो वह संयुक्त राष्ट्र के नीतिगत दस्तावेजों की तरह ही प्रगतिशील नहीं होता। अधिकार जैसी संकल्पनाओं की वह अपने ही तरीके से व्याख्या करता है।
जेन-फिलिप्पी पीमन्स ने बिल्कुल सही कहा है ''वर्तमान पश्चिमी परिप्रेक्ष्य में मानव अधिकारों का संबंध हर हाल में निश्चित तौर पर कार्य की व्यक्तिगत स्वतंत्रता, निजी कार्यों में अहस्तक्षेप, अपनी संपत्ति की देखरेख के अधिकार से है और इन सबसे ऊपर है, किसी भी ऐसे कार्य को रोकने की राज्य की जिम्मेदारी; जो उत्पादन और विनिमय में समय, पूंजी और संसाधनों के निवेश की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन करता है... नव उदारवारी सामाजिक और आर्थिक मांगे वैधानिक इच्छाएं तो कही जा सकती हैं, लेकिन अधिकार नहीं... नव उदारीकरण का विचार अधिकारों के किसी भी सवाल के सामूहिक सिध्दांत को नकारता है। केवल मात्र व्यक्ति ही अधिकारों की मांग कर सकता है और जो अधिकारों का उल्लंघन करते हैं, वह भी अनिवार्य रूप से व्यक्ति ही हैं, अपने कार्यों के प्रति उनकी जवाबदेही भी होनी चाहिए। अधिकारों के उल्लंघन का संबंध किसी भी संगठन या निकाय से नहीं जोड़ा जा सकता है।''

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