21-24 सितम्बर 2007 को ''विश्वबैंक पर स्वतंत्र जन न्यायाधिकरण' पहली बार भारत में

देश के हितों को गिरवी रख, विश्वबैंक की चाकरी कर रहे हैं सरकारी अधिकारी- प्रशांत भूषण
विश्वबैंक के कर्मचारी ही परोक्ष रूप से भारत सरकार की नीतियां बना रहे हैं : प्रो. अरुण कुमार


नई दिल्ली (पीएनएन)। 21-24 सितम्बर 2007 को देश-विदेश के 150 से ज्यादा संगठनों के लोग ''विश्वबैंक पर स्वतंत्र जन न्यायाधिकरण' के लिए इकट्ठा होंगे। दुनिया की सर्वाधिक शक्तिशाली संस्थाओं में से एक -विश्वबैंक की नीतियों से दशकों से जीवन के हर क्षेत्र में प्रभावित लोग अपनी शिकायतें दर्जनों ज्यूरी-सदस्यों के सामने रखेंगे। ज्यूरी-सदस्यों में आबिद हसन मिंटो, एलेजेंड्रो नेडल, ब्रुस रिच, सुलक सिवरक्शा, जस्टिस पी वी सावंत, अरुणा राय, अरुंधति राय, प्रभाष जोशी, महाश्वेता देवी, प्रो अमित भादुरी आदि प्रमुख हैं। विश्वबैंक पर स्वतंत्र जन न्यायाधिकरण' के उद्देश्य पर प्रेस को संबोधित करते हुए ह्यूमन राइट लॉ नेटवर्क की निदेशक दीपिका डिसूजा ने कहा कि जन न्यायाधिकरण का उद्देश्य 'उदारीकरण और नव-आर्थिक नीति' के मुद्दे पर बहस को जगाना है। मुख्य रूप से यह विश्वबैंक और एलीट वर्ग की 'ज्ञान पर तानाशाही' के खिलाफ सीधा प्रहार है। गरीबों, आदिवासियों, दलितों, महिलाओं और अन्य वंचित लोगों के अनुभवों और साक्ष्यों को उजागर करने के लिए हो रहा यह न्यायाधिकरण; विश्वबैंक के आर्थिक और सामाजिक नीतियों की प्रभुता के खिलाफ सीधा संघर्ष है।

प्रेस को संबोधित करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने विश्वबैंक, अमेरिका और अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के बीच का गंठजोड़ भारत के नीति-निर्धारकों के लिए लाल-कालीन बिछाकर बैठा हुआ है। नीति-निर्धारण की प्रक्रिया के वरिष्ठ भारतीय अधिकारियों को विश्वबैंक ऊंचे पद-वेतनों का लालच देकर अपनी नीतियों को लागू करवा रहा है और ये सरकारी अधिकारी देश के हितों को गिरवी रख, विश्वबैंक की चाकरी कर रहे हैं। ऐसे लोगों को नीति-निर्धारण प्रक्रिया में शामिल नहीं किया जाना चाहिए।

प्रसिध्द अर्थशास्त्री प्रो. अरुण कुमार ने कहा सार्वजनिक वित्त के लिए हम पूरी तरह से विश्वबैंक के उपर निर्भर हो गये हैं। वही हमें निर्देशित कर रहा है कि हमें क्या करना है? हम स्वीकार भी कर लेते हैं, जैसे कि हमारे सामने कोई रास्ता ही नहीं बचा हो। विश्वबैंक, आईएमएफ और डब्लूटीओ की नीतियां एकतरफा लादी जा रही हैं, यह वैश्वीकरण का दूसरा चेहरा हमें देखने को मिल रहा है। आय में असामनता, बेरोजगारी तथा उत्पादन में कमी आई है।

अपने प्रेस संबोधन में खाद्य सुरक्षा विशेषज्ञ देविन्दर शर्मा ने कहा कि विश्वबैंक ने अनेक तरीके से भारतीय खेती को प्रभावित किया है। हरित-क्रांति से लेकर अब तक लगातार कर्ज के बल पर खेती की पूरी दिशा को कॉरपोरेट-खेती बनाने में लगा हुआ है। प्रेस से ग्रामीण मजदूर यूनियन उत्तर प्रदेश के सचिव अशोक चौधरी ने कहा कि विश्वबैंक और उसकी संस्थाएं मिलकर परम्परागत आदिवासियों और वनवासियों की जीविका को नष्ट कर रहे हैं। परिवर्तन के अरविंद केजरीवाल ने इस बात पर जोर दिया कि विश्वबैंक के कर्ज में फंसने के बजाए भारत को दूसरे विकल्पों की खोज करनी चाहिए।

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