मौसम, बेरहमी और मौत! कहर बरपा रहे हैं बुंदेलखंड के किसानों पर!

एक तो मौसम का चिड़चिड़ा मिजाज दूसरे जमींदारों और सूदखोरों के अत्याचार! कहर बरपा रहे हैं बुंदेलखंड के किसानों पर! गरीब किसानों को आत्महत्या करते देखकर भी राज्य प्रशासन ने आंखें मूंद ली हैं। एक्शन एड द्वारा किए गए एक अध्य़य़न के आधार पर इन्हीं तथ्यों को उजागर कर रही हैं -प्रज्ञा वत्स

बुंदेलखंड(उ.प्र.) के अविकसित कृषि भागों में रहने वाले गरीब किसानों पर मौसम और शोषण की दोहरी मार पड़ रही है। 12-14 अप्रैल 2007 के दौरान भूख और गरीबी से तंग आकर 3 किसानों ने आत्महत्या कर ली। उनकी मौत को नजरअंदाज कर दिया गया, लेकिन एक्शन एड ने अपने हंगर मॉनिटरिंग प्रोजेक्ट के तहत मामले की जांच की। अध्य़य़न में जलाऊं जिला शामिल है जहां जनवरी से जुलाई 2007 के दौरान से कर्ज से तंग आकर 24 किसानों ने आत्महत्या कर ली थी।
पिछले 4-5 सालों में मौसम की भी किसानों पर ही गाज गिरी है कभी अकाल-बाढ़, तो कभी कम या ज्यादा बरसात या फिर ओलावृष्टि। भारत डोगरा द्वारा किए गए इस अध्य़य़न में बुंदेलखंड के जलाऊं जिले के 13 गांव शामिल हैं। सामाजिक परिस्तिथियां भी किसानों के दुखों को दोगुना कर रही हैं। फिर भी प्रशासन ने इन गरीब किसानों से मुंह मोड़ लिया है और उन्हें जमींदारों और सूदखोरों की दया के सहारे छोड़ दिया है।

कर्ज का शिकंजा
स्थानीय सूदखोरों और जमींदारों द्वारा अत्याचार और शोषण के बाद तो किसानों के पास आत्महत्या करने के सिवाय कोई विकल्प ही नहीं बचा। असुरक्षित आय और कुछ भी बचत न होने से किसान किसी भी मुश्किल से लड़ने में असमर्थ हो जाते हैं। अन्त में वें बनिया से ऊंची ब्याज दरों पर कर्ज लेने को मजबूर हो जाते हैं। कर्ज बढ़ता जाता है। चुकाते-चुकाते वें मर जाते हैं।
अध्ययन के आंकडे़ बताते हैं कि कुछ छोटे किसान तो बनिया और सरकारी बैंक दोनों के कर्जदार हैं। मौसम के बदलते मिजाज की वजह से वें कर्ज लौटा नहीं पाते, जिससे कर्ज के बोझ से दबे किसान, दुखों से निजात पाने के लिये आत्महत्या करने को मजबूर हो जाते हैं। कर्ज की वसूली के लिये जमींदार और बनिया किसानों का शोषण करते हैं।
स्थानीय निवासी अवधेश ने शिकायत करते हुए कहा कि पुलिस भी जमींदार और बनिया के साथ मिली हुई है, हम शिकायत करने किसके पास जाएं? सोमवती ने बताया कि जब कभी कड़ी मेहनत से हम लोग अच्छी फसल उगाते हैं तो ये धन्ना सेठ अपने मवेशियों को चरने के लिये हमारे खेतों में छोड़ देते हैं।

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