हमें इस रहस्य को अवश्य जानना चाहिए कि लगभग पिछली आधी शताब्दी से दुनिया में गरीब देशों को अन्तरराष्ट्रीय कर्जे, विदेशी सहायता और बहुराष्ट्रीय कंपनियों का निवेश, जितना बढ़ा है, उतनी ही गरीबी बढ़ी है। ऐसा कैसे हो सकता है? दुनिया की जनसंख्या से ज्यादा तेज गति से गरीबों की संख्या बढ़ी है।
पिछली अर्ध्दशती के दौरान अमरीकी उद्योगों, बैंकों और पश्चिमी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने 'तीसरी दुनिया' के गरीब देशों- एशिया, अफ्रीका और लातीनी अमरीका में ही निवेश किया है। ये बहुराष्ट्रीय कंपनियां विशाल प्राकृतिक संसाधनों और ऊंचे मुनाफे से आकर्षित हुई हैं क्योंकि वहां न केवल सस्ता श्रम मिलता है बल्कि करों, पर्यावरणीय नियमों, कामगारों के लाभ और कार्य-सुरक्षा लागतों आदि में पूरी तरह से रियायत मिलती है। अमरीकी सरकार ने कंपनियों को समुद्रपारीय पूंजी निवेश के लिए न केवल करों में रियायतें दे रखी हैं बल्कि उन्हें नए स्थान पर बसने के लिए, खर्चे भी उठा रही है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां घरेलू व्यापार को तीसरी दुनिया में बढ़ाती हैं और उनके बाजारों पर कब्जा कर लेती हैं।