जिस तरह से नंदीग्राम के नरसंहार के बाद भी उड़ीसा की नवीन पटनायक सरकार विवादित बहुराष्ट्रीय स्टील कम्पनी 'पोस्को' के लिए जमीन अधिग्रहण तथा पाराद्वीप में नया बन्दरगाह बनाने देने के लिए कटिबध्द दिख रही है, उससे तो यही लग रहा है कि देश की लोकतान्त्रिक सरकारें ही लोकतंत्र का गला ञेटने में सबसे आगे हैं। उड़ीसा में जबर्दस्त जनविरोध के बावजूद सरकार जगतसिंहपुर जिले में बीस हजार एकड़ अधिग्रहीत जमीन दक्षिण कोरियाई कम्पनी पास्को (पुआंग स्टील कम्पनी) को देने पर आमादा है। बुध्ददेव की ही तरह नवीन पटनायक के आदेश पर वहां 5000 से ज्यादा पुलिस ने गांवों को घेर रखा था। लेकिन केन्द्र सरकार के इस निर्णय के बाद की राज्य अब जमीन अधिग्रहण का काम नहीं करेगा। पास्को के दलालों की फौज निजी सेनाओं के साथ एरासमा के इलाके में घूम रही है। जो अलग- अलग गावों में लोगों के बीच जाकर जमीन खरीदने के लिए साम-दाम-दंड-भेद के माध्यम से जमीन खरीदने की ताक में है। जिससे छिटपुट झगड़े हो रहे हैं। बड़ी संख्या में वहाँ के आदिवासियों द्वारा लगातार विरोध किया जा रहा है। भारत जन आंदोलन के नेता डॉ ब्रह्मदेव शर्मा का कहना है कि अब दलालों की भी नाकेबंदी शुरु हो चुकी है। भारत सरकार किसानों के रक्षा के बुनियादी दायित्व से अपने को अलग कर रही है। वह कंपनियों को खुद जाकर जमीन खरीदने के लिए कह रही है। आम आदमी के जिंदगी के आधार को बाजार की चीज बनाकर पेश किया जा रहा है। ऐसे में दानवाकार बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आगे किसान क्या टिक पाएगा।
उड़ीसा सरकार तथा पास्को के बीच जिस सहमति पत्र पर हस्ताक्षर हुए हैं, उसके अनुसार दक्षिण कोरियाई स्टील कम्पनी भारत में अब तक का सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश करने जा रही है जो कि 12 अरब डालर अर्थात 51 हजार करोड़ रुपए के बराबर बैठता है। यह रकम 1991 से अब तक किए गए कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के बराबर है। यही कारण है कि उड़ीसा सरकार किसी भी कीमत पर इस सौदे को हाथ से नहीं जाने देना चाहती है। उड़ीसा में जिस एमओयू पर नवीन पटनायक सरकार द्वारा 22 जून 2005 को हस्ताक्षर किया गया वह एक स्टील संयंत्र और एक बन्दरगाह के लिए था।
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उड़ीसा सरकार तथा पास्को के बीच जिस सहमति पत्र पर हस्ताक्षर हुए हैं, उसके अनुसार दक्षिण कोरियाई स्टील कम्पनी भारत में अब तक का सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश करने जा रही है जो कि 12 अरब डालर अर्थात 51 हजार करोड़ रुपए के बराबर बैठता है। यह रकम 1991 से अब तक किए गए कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के बराबर है। यही कारण है कि उड़ीसा सरकार किसी भी कीमत पर इस सौदे को हाथ से नहीं जाने देना चाहती है। उड़ीसा में जिस एमओयू पर नवीन पटनायक सरकार द्वारा 22 जून 2005 को हस्ताक्षर किया गया वह एक स्टील संयंत्र और एक बन्दरगाह के लिए था।
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